आशीष नंदी विवाद प्रकरण और टीवी चैनलों की कवरेज पर तीन टिप्पणियाँ :
संपादक जी क्या किसी समाजशास्त्री को सिर्फ इसलिए गरिआया जाना चाहिए कि वो अगड़ी जाति का है ?
विनीत कुमार – आशीष नंदी का वैचारिक स्तर पर विरोध करने और उसके लिए सही संदर्भ में तर्क जुटाने में असमर्थ हमारे काबिल पत्रकार/संपादक साथी उनके लिए एक के बाद एक अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं. जिस अखबार,पत्रिका और समाचार चैनल ने दलितों के लिए एक पन्ना या रोजाना एक खबर तक प्रसारित नहीं करता, दलितों का मसीहा बनकर खड़ा है. आप उनकी स्टेटस से गुजरिए,अंदाजा हो जाएगा कि मेनस्ट्रीम मीडिया में किस स्तर की काहिली घुसी हुई है. क्या किसी समाजशास्त्री को सिर्फ इसलिए गरिआया जाना चाहिए कि वो ब्राह्मण,राजपूत या अगड़ी जाति का है. उनको जातिसूचक शब्दों के साथ गरिआने से हाशिए के समाज को सुख मिलता हो,ये अलग बात है लेकिन अगर पलटकर अगड़ी जातियां उन्हें इसी तरह के उपनामों से संबोधित करे तो घंटेभर के भीतर एफआइआर दर्ज हो जाएगा. क्या इस देश में अस्मितामूलक विमर्श इसी तरह से पनपेगा. जब ये पहले से तय है कि ब्राह्मण,राजपूत और अगड़ी जाति होनेभर से वो दलितों का दुश्मन है तो फिर दलित विमर्शकारों को वैचारिक स्तर पर बात करने के बजाय, अपने समाज के लोगों को स्कूल,कॉलेजों में भेजने और किताबों की दुनिया में ले जाने के बजाय हाथ में कट्टा, छूरा और तलवार थमा देना चाहिए और ट्रेनिंग दी जानी चाहिए कि तुम्हें अंधेरे का इंतजार करना है और फिर एक-एक ब्राह्ण,राजपूत और अगड़ी जाति की हत्या करनी है. हद है. (मीडिया विश्लेषक)
शोमा चौधरी – आशीष नंदी एक ऐसे विद्वान हैं जो पिछले तीस सालों से हाशिए के समाज और अस्मितामूलक विमर्श के पक्ष में रहे हैं. टेलीविजन पर उन्हें लेकर जो कुछ भी आ रहा है, बेबुनियाद है. (शोमा चौधरी, मैनेजिंग एडिटर, तहलका)
जगदीश्वर चतुर्वेदी – आशीष नंदी के मामले में मीडिया के अज्ञान क्रांति नायकों ने जिस तरह सनसनी पैदा की है उसने यह खतरा पैदा कर दिया है टीवी कैमरे के सामने कोई भी लेखक खुलकर अपने मन की बातें नहीं कहेगा। टीवी मीडिया और उसके संपादक एक तरह से मीडिया आतंक पैदा कर रहे हैं। यह टीवी टेरर का युग भी है। टीवी टेरर और कानूनी आतंकवाद मिलकर सीधे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले कर रहे हैं। अहर्निश असत्य का प्रचार करने वाले कारपोरेट मीडिया संपादक अपने उथले ज्ञान के आधार पर ज्ञान-विज्ञान-विचार के निर्माताओं को औकात बताने पर उतर आए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने कभी गंभीरता से भारत के समाज,संस्कृति आदि का कभी अध्ययन-मनन नहीं किया। लेकिन आशीष नंदी जैसे विलक्षण मेधावी मौलिक बुद्धिजीवी को कुछ इस तरह चुनौती दी जा रही है, गोया, आशीषनंदी का भारत की ज्ञानक्रांति में कोई योगदान ही न हो। ( कोलकाता विश्वविद्यालय में अध्यापनरत)
(सभी टिप्पणियाँ फेसबुक से ली गयी है)
हे ज्ञानी विनित, सिर्फ अपनी बौद्धिकता की उल्टी करने की बजाए इस मसले पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की फेसबुक टिप्पणी और उस पर मिली प्रतिक्रियाओं को भी पढ़ें..सिर्फ गाल न बजाएं…कुछ और भी ग्रेजुएट हैं इस दुनिया में