विनीत कुमार
अकबर रोड ड्रामा: अर्णब लगातार अपने आज के शो में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं..अर्णब का शो देखने का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि “मेटाफर” प्रयोग करने की शैली का विस्तार होता है. लेकिन इस तरह हर बात के पीछे मेटाफर इस्तेमाल करने का दूसरा बड़ा नुकसान ये है कि चीजें बहुत सपाट होती चली जाती है. ब्लैक एंड व्हाइट एक ऐसा डिवाइडर बनता है जिससे तेजी से गुजरें तो ग्रे होता दिखाई तो देता है लेकिन स्थिर से देखने पर वो जिब्रा क्रासिंग से ज्यादा नहीं लगता.
यही कारण है कि अर्णब अपने शो में चाहे जितनी डिबेट कर लें, चूंकि पहले ही पूरे मुद्दे को मेटाफर की गठरी में बांध देते हैं, इससे पूरी परिचर्चा में विविध विचार निकलकर नहीं आ पाते. वो अपनी तरफ से गढ़े गए मेटाफर अपने पैनलिस्ट पर थोप देते हैं और बंदे/बंदी का पूरा समय उससे मुक्त होने में ही लग जाता है..वैसे भी आप किसी को पाजामा के नाडे के साथ शर्ट पहना देंगे तो वो कॉर ठीक करेगा या फिर उस नाड़े से ही उलझकर रह जाएगा.. अर्णब के शो में ऐसा ही होता है.. बाकी रही बात कांग्रेस की, तो उसकी हालत तो ऐसी हो गई है कि अर्णब से लेकर रजत शर्मा तक के लिए संता-बंता को रिप्लेस कर देने का नया माल है.