मनीष कुमार
पहले मुद्दा उठा दो. बहस छेड़ दो और जब कोई जवाब दे तो चिल्लाने लगो : सांप्रदायिक.. सांप्रदायिक. यही वजह है कि देश की जनता ने ऐसी तमाम शक्तिओं को उनका स्थान दिखा दिया. टीवी वालों को आजकल खबर मिल नहीं रही है. बहस कराने के लिए मैटेरियल नहीं मिल रहा है तो अर्नब गोस्वामी ने देश में घृणा फैलाने की दुकान खोल दी है. पहली डिबेट धर्मांतरण पर और दूसरा मुद्दा ये उठाया कि ताजमहल तेजोमहालय कैसे हैं? पिछले कुछ दिनों से अर्नब गोस्वामी को हिंदू vs मुस्लिम बहस कराने में मजा आ रहा है. साथ में टीआरपी भी मिल ही जाती है. धर्मांतरण पर कल बात करेंगे लेकिन आज ताजमहल की बात करते हैं.
याद रखने वाली बात यह है कि इस मुद्दे को सेकुलर नेता आजम खां ने सबसे पहले उठाया और ताजमहल को वक्फ बोर्ड को देने की पैरवी की. इसके बाद कई मुस्लिम संगठनों ने उनका समर्थन किया था. लेकिन धीरे धीरे ये मामला हिंदू बनाम मुस्लिम हो गया. सवाल यह बना दिया गया कि क्या ताजमहल शिव मंदिर था… अब ये क्या था वो टीवी स्टूडियो में बैठे फर्जी विश्लेषक तो नहीं करेंगे. अगर विवाद इतिहास को लेकर है तो फैसला शोध से ही हो सकता है.
ताजमहल और तेजोमहालय का विवाद सबसे पहले पी एन ओक के द्वारा लिखी किताब से शुरू हुआ. पी एन ओक ने आजाद हिंद फौज में अपनी सेवाएं दी थी. वो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निजी सहायक थे. साथ ही वो आजाद हिंद रेडियो के कमेंटेटर भी रहे. आजादी के बाद उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेटमैन अखबारों में भी काम किया. उन्होंने 1964 में इंस्टीट्यूट ऑफ रिराइटिंग इंडियन हिस्ट्री नाम की संस्था की शुरुआत की. लेकिन गलती यह कर दी कि उन्होंने वामपंथी इतिहासकारों के इतिहास पर ही सवाल उठाना शुरु कर दिया. उनका मानना था कि वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के किसी भी पुरातन चिन्ह के साथ न्याय नहीं किया और हर भारतीय पौराणिक और वैदिक परंपराओं का जानबूझ कर गलत विश्लेषण किया और भारत के इतिहास को बुरे तरीके से पेश किया.
पी एन ओक ने जो किताब लिखी उसमें उन्होंने यह दावा किया कि ताजमहल पहले एक शिव मंदिर था. उन्होंने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए. अपनी किताब में पी एन ओक ने ताजमहल के इतिहास पर सौ से ज्यादा सवाल पूछे. उन्होंने ताज और ताज़ के फर्क के जरिए ताजमहल के नाम पर ही सवाल उठाया. ताजमहल के गुंबद के शीर्ष पर लगे चांद को बताया कि ये नारियल व कलश है. अब तक पत्रिकाओं और कहानियों में हमने ताजमहल के उपर चांद को ही देखा जबकि हकीकत ये है कि वो वाकई में नारियल व कलश है. वो पूछते हैं कि मुमताज की मौत तो आगरा से करीब 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में 1631 हुई और उसे वही दफनाया गया तो ताजमहल में किसकी कब्र है? क्योंकि ताजमहल तो इसके 22 साल बाद 1653 में बन कर तैयार हुआ था. अगर वहां से कब्र को उठा कर लाया गया तो कब लाया गया? मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में आज भी मुमताज की कब्र आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देखरेख में मौजूद है. बादशाहनामा, जो शाहजहां की जीवनी है, में इसका उल्लेख क्यों नहीं है?
इसी तरह से पीएन ओक ने युरोपियन, पर्सियन, आर्कियोलॉजिकल, संस्कृत के अभिलेख व शिलालेखों के सबूत दिए. कार्बन डेटिग का भी उदाहरण दिया. उन्होंने शाहजहां से पहले आए कई विदेशी यात्रियों की किताबों को भी सबूत के तौर पर पेश किया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वो औरंगजेब द्वारा जयपुर के राजा को लिखी एक चिट्ठी को पेश करते हैं जिसमें औरंगजेब मकराना से सफेद संगमरमर भेजने की मांग करता है. इस चिट्ठी में औरंगजेब ने लिखा कि ताजमहल की ईमारत अब पुरानी हो गई है. इसकी मरमम्त के लिए संगमरमर की जरूरत है. ये चिट्ठी औरंगजेब ने 1651 में लिखी और इतिहासकार बताते हैं कि ताजमहल 1653 में बनकर तैयार हुआ. अब या तो औरंगजेब की चिट्ठी फर्जी है या फिर इतिहासकारों का दावा फर्जी है. पी एन ओक ने अपनी किताब में कई तथ्यों के आधार पर ताजमहल के इतिहास पर सवाल उठाया है. उसके लिए शाहजहां से पहले लिखी गई कई किताबों का उल्लेख भी किया है. क्या देश में इतिहास पर सवाल उठाना कोई जुर्म है? किसी शोध पर प्रश्नचिन्ह लगाना कब से सांप्रदायिक हो गया? सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पी एन ओक का मानना है कि ताजमहल का बेसमेंट जो बंद पड़ा है अगर उसकी जांच की जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.
पी एन ओक की बातों में कितनी सच्चाई है या कितना झूठ है इसका फैसला टीवी में बैठे एंकर तय नहीं कर सकते. न ही देश के फर्जी वामपंथी इतिहासकार यह तय कर सकते हैं क्योंकि पी एन ओक की किताब आने के बाद वामपंथी इतिहासकारों का गिरोह उन पर टूट पड़ा. उनकी कई किताबें बैन हो गई. बैन करने की वजह यह थी कि उनकी किताबों से हिंदू मुस्लिम एकता को खतरा था. वाह रे वामपंथी इतिहासकारों का वैज्ञानिक शोध.. वाह रे देश की राजनीति जो एक किताब से इतनी परेशान हो गई. ये वही साइन्टिफिक इतिहासकार हैं जिन्होंने ये दावा किया था कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई मंदिर नहीं है.. जब खुदाई हुई तो मंदिर निकल गया.. तो सीधा सा सवाल यही उठाता है कि ये कैसे इतिहासकार हैं जो झूठ को इतिहास बता देते हैं. और इनके द्वारा लिखी गई किताबों पर कैसे विश्वास किया जाए. ये इतने बड़े जालसाज हैं कि इनकी हर बातों पर अब तो इनके हर साक्ष्य औऱ प्रमाण को टेस्ट करने की आवश्यकता है.
पी एन ओक ने एक किताब लिखी. चलिए मान लेते हैं कि पी एन ओक को इतिहास की समझ नहीं थी.. लेकिन जनता के पैसे से लखपति बने महान महान इतिहासकारों का दायित्व क्या था? अच्छा तो ये होता कि ये इतिहासकार पी एन ओक के सवालों का जवाब देते .. उनके द्वारा उठाए सवालों व सबूतों की जांच करते… लेकिन इन महान इतिहासकारों ने क्या किया… पी एन ओक को एक स्वर में संघी-इतिहासकार घोषित कर दिया.. उनके सवालों को गौण कर दिया.. उन्हें पागल करार दिया गया.
मैं नहीं जानता कि पी एन ओक की बातों में कितनी सच्चाई है… लेकिन अगर उन्होंने कुछ सवाल उठाए तो उसका जवाब मिलना चाहिए. किसी को संघी बताकर.. पागल घोषित कर देने से आपकी कमियां छिपती नहीं बल्कि उजागर होती है.. मैं ये अच्छी तरह से जानता हूं कि वामपंथी इतिहासकारों और उनका गैंग एक ऐसी प्रजाति है जो सवाल का जवाब तिकड़मबाजी से देने में माहिर हैं.. समय बदल गया है… लोग बदल गए हैं.. इतिहासकार अब अपना चेहरा राजनीतिक दलों और सरकारों के पीछे नहीं छिपा सकते हैं.. उन्हें हर सवाल का जवाब अब देना होगा. देश की एकता और अखंडता बचाने के नाम पर अनर्गल इतिहास को रिजेक्ट करने का समय आ गया है. @fb