अमिताभ श्रीवास्तव और दीपक शर्मा भूखे पेट पब्लिक चैनल में कबतक पब्लिक काम करेगी?

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पब्लिक चैनल शुरू करने की पहल अच्छी, लेकिन अमिताभ श्रीवास्तव, दीपक शर्मा के लिए कुछ सुझाव

सुजीत

सुजीत ठमके
सुजीत ठमके

अमिताभ श्रीवास्तव और दीपक शर्मा दोनों खांटी पत्रकार हैं। पत्रकारिता दोनो के रग – रग में भरी है। टीवी न्यूज़ इंडस्ट्री का दोनों महानुभावों को अच्छा अनुभव है। देश-दुनिया की राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय मसला, खबर के अंदर की खबर, आतंकवाद, नक्सलवाद, अंडरवर्ल्ड, ग्लोबल स्लोडाउन, करेंट अफेयर्स से लेकर विजुअल पैकेजिंग आदि की भी बेहतर समझ रखते हैं। इसके अलावा दोनों दर्शकों के नब्ज को भी समझते हैं। इसलिए अभी जिस मिशन में दोनों लगे हैं वह जेन्यूइन लगता है. लेकिन मिशन में आगे बढ़ने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर फरमाना भी जरूरी है.

शायद ही किसी को इस बात पर शक हो कि अभी न्यूज़ इंडस्ट्री संक्रमण काल से गुजर रहा है। अधिकतर टीवी पत्रकार कॉर्पोरेट के हाथों बिक चुके हैं। कुछ मंत्री के साथ गठजोड़ करके दलाली करना ही अपना धर्म मानते है। इसलिए समाज की ख़बरें हाशिये पर है। टीवी न्यूज़ की सच्चाई ये है कि एसपी साहब की टीवी पत्रकारिता टीवी स्क्रीन पर दम तोड़ रही है। कहने का मतलब है कि वर्तमान में टीवी पत्रकारिता जिस ट्रैक पर है वो ट्रैक की दिशा ही पूरी तरह से गलत है। ऐसे में यदि अमिताभ श्रीवास्तव और दीपक शर्मा माहौल बेहतर करने की दिशा में बढ़ रहे हैं तो ये स्वागतयोग्य पहल है। लेकिन कुछ गंभीर सवाल है।

न्यूज़ चैनल कोई एनजीओ नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन भी नहीं है । इमें आम आदमी पार्टी जैसे वॉलेंटियर्स भी नहीं है जो चुनाव के समय पार्टी के लिए वक्त देते है और बाकी समय अपनी नौकरी करते है। कोई भी शख्स चैनल में वॉलेंटियर्स का काम कुछ महीने तक कर सकता है। परन्तु जब पारिवारिक बोझ और जिम्मेदारी आएगी ऐसे वक्त प्रेक्टिकल लाइफ से कोई भाग कैसे सकता है ? भूखे पेट कोई कब तक चैनल की सेवा करेगा?

दीपक शर्मा, अमिताभ श्रीवास्तव और टीम की चैनल लाने की पहल अच्छी है। अपने आप में ये ‘क्रांतिकारी’ प्रयोग है। उम्मीद है कि सफल भी होगा। लेकिन एक सुझाव है कि चैनल तो जनता के पैसे से हो, लेकिन इतना प्रोफेशनल और कमर्शियल भी हो कि कार्पोरेट वर्ल्ड, सरकार इस चैनल को विज्ञापन देने के लिए मजबूर हो जाए और चैनल का प्रबंधन भी डंके की चोट पर, ठोक बजाकर सरकार, कार्पोरेट वर्ल्ड को कहे आपके विज्ञापन देने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हम टीवी पत्रकारिता का धर्म और नैतिक मूल्यों को भूल जाए। ऐसा संभव है।

सुजीत
पुणे -411002

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