प्रख्यात पत्रकार आलोक तोमर की दूसरी पुण्यतिथि पर 20 मार्च को गांधी शांति प्रतिष्ठान में शुरुआती माहौल तो एक श्रद्धांजलि सभा का ही था, लेकिन कार्यक्रम का आखिरी हिस्सा एक गर्मागर्म बहस के नाम रहा। मीडिया की भाषा विषय पर हुई इस बहस में अंग्रेजी बनाम हिन्दी, वर्तनी की अशुद्धता और भाषाई प्रयोग का मुद्दा उठा तो बहस के इस मौके पर कुछ युवा पत्रकारों के हस्तक्षेप ने कार्यक्रम को ताजादम बना दिया।
वरिष्ठ पत्रकार और कार्यक्रम के संचालक राहुल देव ने मीडिया की भाषा विषय पर बहस की शुरुआत करते हुए हिन्दी पत्रकारिता में भाषा के मसले को अंग्रेजी बनाम हिन्दी के संदर्भ में रखा। उनके मुताबिक हिन्दी या भारतीय भाषाओं का पत्रकार उसी अनुपात में अच्छी हिन्दी या भारतीय भाषाओं का प्रयोग क्यों नहीं करता जिस अनुपात में अंग्रेजी के पत्रकार अच्छी अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं। राहुल देव ने जोर देकर कहा कि दरअसल, अच्छी और गैरमिलावटी हिन्दी बोलने का हमारा अभ्यास कम हो गया है, हम अच्छी भाषा सीखने को तैयार नहीं हैं और भाषा के स्तर को सायास बेहतर करने के बजाय हम भाषा को अपने स्तर पर उतारने और अपने स्तर को ही मानक भाषा करार देने की कोशिश कर रहे हैं। अच्छी हिन्दी बोलने और लिखने के बजाय हम कामचलाऊ हिन्दी-हिंग्लिश के इस्तेमाल से ही संतुष्ट हैं।
हालांकि, राहुल देव के बाद के कई वक्ताओं ने मीडिया के वर्तमान संदर्भ में भाषा की बहस को अप्रासंगिक करार दिया। इंडिया न्यूज के संपादक दीपक चौरसिया ने कहा कि वे हिन्दी में अंग्रेजी की कथित मिलावट और हिन्दी भाषा की शुद्धता को लेकर चिंतित नहीं हैं। दीपक के मुताबिक दरअसल, हिन्दी पत्रकार अंग्रेजी से इतने आक्रांत हैं कि वे अंग्रेजी के हैंग-ओवर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। भाषा की बहस से आगे जाकर दीपक ने अंग्रेजी और हिन्दी पत्रकारिता के सामाजिक व्यवहार की तुलना की। उनके मुताबिक अंग्रेजी के पत्रकार एक-दूसरे को सहारा देते हैं, एक दूसरे की बात करते हैं, लेकिन हिन्दी के पत्रकार एक दूसरे की टांग- खिंचाई में लगे रहते हैं। अंग्रेजी अखबार गाहे-बगाहे अंग्रेजी चैनलों के संपादकों-पत्रकारों की बात करता है, लेकिन हिन्दी के अखबार हिन्दी चैनलों के पत्रकारों को नजरअंदाज करते रहे हैं। इस दौरान, दीपक ने हिन्दी पत्रकारों पर चर्चा करने-कराने का श्रेय मीडिया खबर और दूसरे मीडिया पोर्टल्स को दिया। न्यूज नेशन के संपादक शैलेश ने समाचार चैनलों में भाषाई अव्यवस्था पर बात करते हुए विशेषणों के अत्यधिक प्रयोग पर सवाल उठाया। आलोक तोमर की कई रिपोर्टों और उनकी लेखन शैली का उल्लेख करते हुए शैलेश ने कहा कि आलोक तोमर जैसे पत्रकारों की खासियत यही थी कि वो घटना को जस का तस लिखते थे। रिपोर्टिंग में विशेषणों का प्रयोग करते हुए अपनी तरफ से कोई निर्णायक राय रखने को शैलेश ने गलत करार दिया।
आज तक के पूर्व न्यूज डायरेक्टर कमर वहीद नकवी ने कहा कि अगर हिन्दी में अंग्रेजी का घालमेल इसी तरह जारी रहा तो हिन्दी का बचना मुश्किल हो जाएगा। न्यूज एक्सप्रेस के पूर्व संपादक मुकेश कुमार ने कहा कि ऐसा नहीं है कि युवा पत्रकार पढ़े-लिखे नहीं हैं या उनमें भाषा को बरतने की तमीज नहीं है। दरअसल, पत्रकारिता की विषय-वस्तु को इतना सीमित कर दिया गया है कि बार-बार एक तरह के शब्दों और एक तरह की भाषा का दोहराव मजबूरी-सी बन गई है। इस मौके पर चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय, न्यूज एक्सप्रेस के पूर्व प्रबंध संपादक कुमार राकेश और ग्वालियर से आए आलोक तोमर के प्रशंसकों ने भी अपनी राय रखी।
परंपरागत ढर्रे पर चल रहे कार्यक्रम में बहस की उष्मा उस समय अपने चरम पर पहुंच गई जब आज तक के प्रोड्यूसर नवीन कुमार ने हिन्दी को लेकर पहले के वक्ताओं की चिंता को रूदाली करार दिया। कार्यक्रम में बैठे वरिष्ठ पत्रकारों को कठघरे में खड़ा करते हुए नवीन ने कहा कि यहां बैठे लोग ऐसे बात कर रहे हैं मानो जिम्मेदार पदों पर उनके रहते तो सब कुछ ठीक था, और जैसे ही ये लोग अपने-अपने पदों से हटे सब कुछ खराब हो गया। नकवी और राहुल देव जैसे लोगों की ओर इशारा करते हुए नवीन ने कहा कि अगर हिन्दी की ये हालत है तो इसकी जिम्मेदारी आप ही लोगों की है, क्योंकि हिन्दी को बचाने की जिम्मेदारी आप ही लोगों पर थी। मीडिया की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए भी नवीन ने वक्ताओं को घेरा। उन्होंने कहा,”अपने सीने पर हाथ रखकर कहिए, क्या आपने पत्रकारों की भर्ती के समय उनसे भाषा से जुड़े सवाल पूछे थे या उनके चेहरे या फिगर देखकर आपने उन्हें नौकरी पर रखा ”। सवाल की शक्ल में नवीन कुमार के संक्षिप्त वक्तव्य के बाद एक बार फिर बारी-बारी से राहुल देव और नकवी मंच पर आए और नवीन के सवालों के जवाब देने की कोशिश की। बहस की गर्मी राहुल देव पर भी तारी दिखी जब उन्होंने कहा कि ये हारे हुए लोगों का विलाप नहीं है और उनके जैसे कई पत्रकार अंग्रेजी मीडिया को छोड़कर हिन्दी में अपना भविष्य बनाने आए। ये ऐसे लोगों की चिंता है जो अंग्रेजी में भी उतने ही समर्थ हैं जितने हिन्दी में।
(सार्थक की रिपोर्ट )