महाकवि निराला के जीवन और उनके सृजन के साथ इस बार का एपिसोड समर्पित था। निराला के साहित्य संसार के अलावा उनके जीवन स्वभाव धारणा आत्मसम्मान से जुड़ी अनकों प्रसंग कहे जाते रहे हैं। इस एपिसोड में उन प्रसंगों को समेटने की लगभग सफल कोशिश हुई है। सुमित्रानंदन पंत जैसे कवि ने कहा था कि निराला ईश्वर के लिए हिंदी भाषा की देन हैं तो आज के साहित्य मनीषी गंगा प्रसाद बिमल के शब्द है- हिंदी की अनुगूंज जहां जहां है निराला का साहित्य वहां प्रभावित करता है। वर दे वाणी वादनी वर दे, वह तोड़ती पत्थर इलाहबाद के पथ पर , जाग रे जैसे कालजयी रचनाओं को समाज को देने वाले निराला अपने नाम के अनुरूप निराले ही थे। दया भाव संवेदनशीलता उनके स्वभाव में था जिसे चैनल कुछ प्रसंगों में बखूबी दिखाया।
1- एपिसोड में महात्मा गांधी से उनका एक वैचारिक विवाद के प्रसंग से इसकी शुरूआत की गई। इसने रोचकता जरूर बढाई लेकिन अच्छा होगा अगर वर दे वीणा वादिनी से इसकी शुरुआत होती। वैसे जानना अच्छा लगा कि किस तरह निराला गांधीजी की बात पर बिफर गए थे कि हिंदी में टेगोर के समकक्ष कोई कवि नहीं । महात्मा के समक्ष अपनी बात रखने का एक कौशल और साहस था निरालाजी के पास
2- जब हम हिंदी की बात करें और निराला पर बात हो तो छोटी त्रुटि भी अखरती है। विडियो में एवं की जगह एंव आना या महाकवि निराला को प्रस्तुत करने वाली पंक्तियों को सरसरी ढंग से लिखना थोडा अखरता है। थोडा साहित्यिक पुट होना चाहिए। इसी तरह कवि गा रहा था वो आता दो टूक लेकिन पर्दे पर लिखा था वह आता दो टूक।
3- कुमार विश्वास मंच सजाना तो जानते ही हैं। लेकिन इलाहबाद के पथ पर जैसी कविता के लिए धुन और बेहतर हो सकती थी। वीणा वादनी वर दे में अच्छा होती किसी स्कूल में गाते बच्चों की झलक दिखाई जाती। लेकिन बांधों न नाव इस ठौर का प्रस्तुतिकरण बहुत सुंदर था।
4- न जाने क्यों वह चर्चित किस्सा नहीं आया जब प्रधानमंत्री नेहरू के जरिए समय पर न बुलाए जाने से निराला एक पर्ची छोडकर बिना मिले चले गए।
5- उनकी तमाम रचनाओं पर बखूवी कहा गया। लेकिन थोडा हिंदी के आलोचकों समीक्षकों को उस पर प्रकाश डालना था। वैसे कुमार विश्वास ने यह जरूर कहा कि कबीर और निराला में साम्य है। वे कवि और संत दोनों है। बस कबीर पहले संत है फिर कवि हैं निराला कविता के माध्यम से समाज को जगाते हैं प्रेरित करते रहे हैं। अहंकार और आत्मसम्मान के बीच जो एक महीन धागा होता है वह दिखाई देता है जब वह एक साहित्यिक सम्मेलन में पं रामचंद्र शुक्ल जैसे मनीषी के अपमान पर आयोजको को झिडक देते हैं। यहां निराला संपूर्णता में दिखते हैं।
6 – निरालाजी और उनकी मुंहबोली बहन के बीच बातचीत का प्रसंग थोडा नाटकीय सा हो गया। कहा यही जाता है कि महादेवी बहुत धीर गंभीर विदूषी महिला थी। शायद ही इस तरह वार्तालाप होता रहा हो। फिर भी ..संभव है एपिसोड को तैयार करने में महादेवीजी के निरालाजी से बातचीत में इस भाव भंगिमा का पता चला हो।
7 – निरालाजी पर केंद्रित यह एसिपोड इतना तो बता ही देता है कि इलाहाबाद के कई परिचय है , लेकिन एक परिचय जो शहर को बहुत गरिमामय सुसंस्कृत और आदर के योग्य बनाता है वो यह है कि शहर निरालाजी का है। इस धारावाहिक के बहाने उस गली को भी देख पाए जहां कभी महाकवि रहते थे। जहां कभी सुमित्रानंदन पंत महादेवी वर्मा बच्चनजी जैसे कविगण आते थे। जहां इलाहाबाद के पथ पर जैसी रचना रची गई होगी।
8 जिन कवियों की रचनाओं को हम स्मरण करते हैं बार बार सुनते हैं पढते हैं , वास्तव में उन कवियों की निजि जिंदगी पर कितना जान पाते हैं। शायद इस एपिसोड को देखने वाले लोगों में कितने ऐसे होंगे जिन्हें यह मालूम हो कि महाकवि की पत्नी मनोरमाजी के कहने पर वह हिंदी साहित्य की ओर मुडे थे। और मनोरमाजी का गायन। श्रीराम चंद्र कृपालु भज मन जैसे भजनों की स्वर लहरी में एक अलग संस्कार जगा। राम की शक्ति पूजा की रचना के पीछे कहीं यही प्रेरणा तो नहीं। और भी कई प्रसंग जो महसूस कराते हैं कि समाज की दिशा के लिए अपने नायकों को बताना कितना जरूरी है। खासकर हिंदी के नायकों को जो इस रूप में अछूते रह जाते हैं। नए समाज से कहीं दूर छिटके रहते हैं।
9-पात्र अपनी भूमिका के अनुरूप लगने चाहिए। जिस महिला को तीन दिन से भूकी भिखारी के रूप में बताया गया , चेहरे से वह अच्छे परिवार की लगती हैं। चेहरे में वो भाव नहीं आ सकता था जो एक लाचार भूखी महिला का हो सकता है। लेकिन यह मामूली सी नाट्य क्षेत्र की त्रुटि कही जा सकती है।
10 अच्छा होता किसी नए स्कूली कालेज के छात्रों के बीच जाया जाता कि वह निरालाजी के बारे में कितना जानते हैं। अच्छा संयोग है और कहा भी कुमार विश्वास ने कि बसंत पचमी को ही निरालाजी जन्में थे और कुमार विश्वास पर भी मा सरस्वती की कृपा को है ही। हां पाश्वर् के साजों में में सितार के बजाय वीणा रखी होती तो और अच्छा लगता।