@ सीमा मुस्तफा
किरन बेदी इससे पहले राजनीतिक हस्तक्षेप करती रही हैं, लेकिन एक पूर्णकालिक राजनेता वे कभी नहीं रहीं। उनके व्यक्तित्व में एक पुलिस अधिकारी का भाव इतना सघन है कि उनके लिए एक राजनेता की शैली अख्तियार करना भी बहुत कठिन होगा।
यही कारण था कि जब उन्होंने दिल्ली से भाजपा के सातों सांसदों को भोज पर बुलाया तो वह न्योते से ज्यादा एक ‘ऑर्डर” की तरह था। दो सांसदों ने उनके इस न्योते को नजरअंदाज किया तो पार्टी नेतृत्व की तरफ से उन्हें आगाह कर दिया गया कि वे किरन बेदी का असहयोग न करें।
लेकिन जो पांच सांसद हाजिर हुए, वे भी किरन बेदी के रवैये से बहुत खुश नहीं बताए जाते हैं। इसके बाद उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई तो यहां भी एक शीर्ष पुलिस अधिकारी द्वारा कांस्टेबलों से बात करने वाला अंदाज था।
पता नहीं, किरन बेदी को पार्टी सांसदों और कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया के बारे में बताया गया या नहीं, लेकिन अगर बताया हो, तब भी वे इस तरह की चीजों की ज्यादा परवाह नहीं करती हैं। उनके साथ काम कर चुके लोग बताते हैं कि वे कभी भी टीम प्लेयर नहीं रही हैं और स्वतंत्र निर्णय लेना पसंद करती हैं।