हर्ष रंजन
यह आकाशवाणी है। अब आप …………. से समाचार सुनिये। आज की युवा पीढ़ी के लिये ये शब्द और वाक्य शायद कुछ ख़ास मायने न रखते हों, लेकिन 70 के दशक और उससे पहले जन्मे लोगों के लिये इसका बेहद खास महत्व है। सैटेलाईट टीवी और प्राइवेट एफएम की भीड़ में आकाशवाणी समाचार कहीं खो सा गया है इसीलिये ज़रूरी है कि आज इस पर चर्चा की जाय। टीआरपी की अंधी दौड़ दौड़ रहे टीन-एजर समाचार चैनल्स क्या जाने कि आकाशवाणी समाचार ने अपने बचपन, टीन-एज और जवानी में क्या जलवे बिखेरे हैं। इसकी आज सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।
आकाशवाणी समाचार के जलवों की तीन घटनाएं मुझे स्पष्ट तरीके से याद हैं। पहली 1971 के युद्ध की, दूसरी इमरजेंसी से लेकर जयप्रकाश नारायण की मौत तक की और तीसरी 1984 में इंदिरा गांधी के हत्या के बाद की। 1983 में क्रिकेट वर्ल्डकप की कमेंटरी सुनने से कहीं ज्यादा लोग 1984 में इंदिरा जी के बाद के हालात जानने के लिये रेडियो से चिपके रहे थे। देवकी नंदन पांडेय उस दौर के वो नाम थे, जिनकी कही हर बात सरकार और मंत्रिमंडल के फैसलों पर अपनी मुहर लगाती थी। गाहे-बगाहे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उन्हें सीधे फोन कर खैर-तवज्जो पूछ लेती थीं। पांडे जी आकाशवाणी में समाचार वाचक यानी न्यूज़ रीडर के पद पर कर्यरत थे। उनके बेटे सुधीर पांडे फिल्मों मे एक्टर हैं। उनसे गुज़ारिश करूंगा कि कुछ संस्मरण वो भी शेयर करें। आज किस न्यूज़ चैनेल का एंकर दावा कर सकता है कि प्रधानमंत्री तो दूर उनके कार्यालय से भी बिना मकसद किसी को फोन किया गया हो। जनता जिसे सुनने के लिये और अपनी घड़ी मिलाने के लिए पांच-दस मिनट पहले से ही इंतज़ार करती हो। यानी आज का तथाकथित एप्वॉयटेड ऑडियेंस।
हम बड़े शहरों में रहते हैं, इसलिये अहसास नहीं, लेकिन आकाशवाणी समाचार का जलवा आज भी है। ज़रा गांवो और कस्बों में जाकर देखिये, पता चल जायेगा। ये ठीक है कि आकाशवाणी अपनी न्यूज़ स्टोरीज़ में तड़के लगाकर नहीं परोसता मगर लोगों की सेहत के लिये अच्छा तो यही है कि कम घी तेल, मिर्च मसाले वाले भोजन ही किये जायें। आकाशवाणी समाचारों की कमान अभी अर्चना दत्ता के हाथों मे है। ये वहां की डॉयरेक्टर जेनरल यानी डीजी न्यूज़ हैं। बकौल अर्चना जी देश को तटस्थ और साक्षी भाव से सूचना सेवा देने में आकाशवाणी आज भी अव्वल है। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में आकाशवाणी समाचार, टेक्नॉलजी और आज की मांग में बेहतर समन्वय यानी कोऑर्डिनेशन स्थापित करेगा। डिजिटाईजेशन पर भी ज़ोर है। वे कहती हैं- सच, संतुलन और सूचना समन्वय का आकाशवाणी समाचार से बेहतर कोई उदाहरण नहीं।
जापान के सरकारी एनएचके रेडियो के साथ भारत सरकार का एक्सचेंज टाईअप है, जिसमें दोनो देशों के ब्रॉडकॉस्ट पत्रकार एक दूसरे के यहां तीन साल के लिये जाते हैं। इसके तहत अभी तक एनएचके ने किसी प्राईवेट चैनेल के पत्रकार को अहमियत नहीं दी है। आकाशवाणी समाचार में आज सबसे बड़ा नाम है- अखिल मित्तल। ये दो बार एनएचके द्वारा तीन-तीन साल के लिये जापान जा चुके हैं। अखिल अतर्राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार हैं। रेडियो पर इनके समाचार सुनाने के अंदाज़ से ही पता चल जाता है कि जानकारी किस कदर इनके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है। मगर ये लोग कभी अपने को प्रचारित-प्रसारित नहीं करते, ठीक वैसे ही जैसे आकाशवाणी समाचार अपने को प्रचारित नहीं करता…शायद इसकी ज़रूरत भी नहीं।
(लेखक वर्तमान में इंडिया टुडे ग्रुप के साथ जुडे हुए हैं. उनके एफबी वॉल से साभार)