संजय सिन्हा से बुक ‘रिश्ते’ के लॉन्च के बाद बेबाक बात हुई। बात शुरु करने के पहले ही संजय सिन्हा को आगाह कर दिया कि सवाल वैसे ही होंगे, जो आप एक रिपोर्टर के रुप में देश-विदेश में पूछते आए। जब सुनामी कवर करते वक्त आपने सरकारी महकमों के कारिंदों को सवालों की बौछारों से नहीं छोड़ा, तो खुद के लिए भी तैयार हो जाइए। ये वहीं संजय सिन्हा है, जो गुजरात के भूकंप की रिपोर्टिंग से दिली तौर पर इतने परेशान हो गए थे, कि जो टीवी कैमरे पर नहीं कह पाए, वो सारा कागजों में कलम के माध्यम से कह डाला था। अमेरिकी इतिहास के अबतक के सबसे बड़ा हादसा माने जाने वाले 9/11 अटैक को कवर करने वाले संजय सिन्हा से बात कर लगा कि हादसों को कवर करते-करते इनकी ज़िंदगी पर भी उस रिपोर्टिंग का असर पड़ा है। क्योंकि बकौल संजय सिन्हा फेसबुक पर रिश्तों को लेकर लिखा कोई प्लानिंग नहीं, एक हादसा-सा ही था।
वैसे जर्नलिस्ट की पारिवारिक ज़िंदगी कभी आसान नहीं होती, तो फिर खुद को देश का सबसे तेज कहने वाले न्यूज़ के एडिटर की कैसे होती, तो हादसों को कवर करता रहा हो। ये सवाल चुभता जरुर है, लेकिन पत्रकारों की निजी ज़िंदगी का सच होता है। संजय सिन्हां की पत्नी दीपशिखा ने भी माना कि हादसों को कवर करते-करते उनके पति कभी-कभी बहुत संवेदनशील हो जाते थे, और खासकर तब, जब टीवी कैमरे के सामने चाहकर भी बहुत सी बातें बयां करने की आजादी ना हो। ऐसे में फेसबुक पर शुरु हुए मानवी रिश्तों के एक हादसों को कवर करने वाले रिपोर्टर द्वारा पोस्टमॉर्टम संजय सिन्हां को उस प्रोफेशनल फ्रस्टेशन से बाहर निकाल पाया। ‘हां, संजय इसके बाद से ज्यादा सकारात्मक हुए’-
आजतक जैसे देश के नामी चैनल का एक्सेक्यूटिव एडिटर वो पा गया, जो उसे एक बड़ी नौकरी, बड़ी सैलरी, बड़ा घर, बड़ी कार या बड़ा पद औऱ उससे जुड़ा बड़ा सामाजिक सम्मान नहीं दे पाया। संजय सिन्हां को ढेर सारे ऐसे रिश्ते मिले, जो दरअसल वो अपने जन्म के साथ या परिवार से नहीं पाए थे। वो सोशल मीडिया की वर्चुल दुनिया से बटोरे गए थे।
देश के अलग-अलग हिस्सों से, अलग-अलग पेशों से, अलग-अलग जात-धर्म-रंग-भेद के। बुक लॉन्च के बाद संजय सिन्हां के चेहरे का सूकुन टीवी मीडिया की सच्चाई बयां कर रहा था- ज़िंदगी वो नहीं जो लोगों को दिखती है, ज़िंदगी कुछ औऱ भी हो सकती है, ज़रा तलाशिए तो।