आजतक न्यूज चैनल देखते हुए अक्सर आपके मन में ये सवाल उठता रहा होगा कि आखिर इस चैनल की डिक्शनरी में लाज-शर्म शब्द है कि नहीं. आज अगर आपने ये खास कार्यक्रम जिसे कि एंकर सुमित अवस्थी न्यू अरायवल के अंदाज में पूरे मनोयोग से परोस रहे थे तो एक और सवाल उठेगा- क्या महाभारत का मतलब सिर्फ बीजेपी है और आजतक चैनल की बपौती है कि वो इसकी कथा और चरित्रों को जैसे चाहे दालमखनी बनाकर पेश करे.
महाभारत के जो मिथक और इसकी कथा से जुड़ी आस्था है, उस बहस में न भी जाएं तो ये एक बेहतरीन रचना है जिसकी समय-समय पर व्याख्या और विश्लेषण होते रहे हैं. अगर आजतक को अगर हार्डकोर राजनीति को सास-बहू सीरियल की शक्ल में ही पेश करना है तो फिर उसके लिए महाभारत के कथानक और चरित्रों का ही प्रयोग क्यों ?
दूसरी तरफ अगर वो सचमुच राजनीति को महाभारत की शक्ल में पेश करना चाहता है तो उसे चाहिए कि ऐसी घासलेटी स्पेशल स्टोरी बनाने के पहले एक बार गुरुचरण दास की the difficulty of being good on the subtle art of dharma के कुछ पन्ने पलट ले और इस एहसास के साथ स्टोरी बनाए कि टीवी देखनेवाले और रामायाण महाभारत की कथा में दिलचस्पी रखनेवाले सारे दर्शक संघी और भाजपाई ही हैं. क्या आजतक ये दावा कर सकता है कि जिस दागदार अमित साह को उसने मोदी का हनुमान कहा है, उससे एक सामान्य दर्शक को आपत्ति नहीं होगी..
चिरकुटई की हद देखिए कि चैनल को महाभारत कथा की बेसिक समझ तक नहीं है. अब उसे कौन बताए कि जिस संदर्भ के लिए उसने हनुमान का जिक्र किया है, वो रामायण में हैं, महाभारत में नहीं..हद है.
चैनल से ये सवाल हर हाल में पूछा जाना चाहिए कि देश में लोकतंत्र की बहाली के साठ से ज्यादा साल बाद भी वो राजतंत्र के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्दों और कथानकों का इस्तेमाल क्यों कर रहा है..ये लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन नहीं तो और क्या है ?
भाजपा,कांग्रेस औऱ दूसरी राजनीतिक पार्टियां सबके सब लोकतंत्र के भीतर हैं. ये अलग बात है कि उनकी राजनीति सामंती,जातिवादी, ब्राह्मणवादी और उतनी ही जड़ है जितनी कि आजादी से पहले राजतंत्र में हुआ करती थी..लेकिन क्या मीडिया से इस बात के लिए सवाल नहीं किए जाने चाहिए कि लोकतंत्र के बहाल एक देश देश में राजतिलक, राज्याभिषेक, गद्दी..राजतंत्र से जुड़े ऐसे दर्जनों शब्दों का प्रयोग क्यों कर रहे हैं ?
राजनीतिक पार्टियां तो इस देश को अपनी जागीर समझती ही रही है लेकिन इनके नायक-खलनायक को राजा के रुप में पेश करना कहां तक सही है ? कहीं मीडिया भी राजतंत्र में ही तो यकीन नहीं करता और चारण परंपरा से अपने को अलग करके देखने के लिए तैयार नहीं है.
tehelaka ke congressi dalalo se aisee hi post expected hai.. unko aajtak dwara Modi ke naam par koi news dikhana bardast nhi hai