वेद विलास उनियाल
अगला दृश्य – माफी मांगने का । पात्र आशुतोष।
मंचन – टीवी कैमरा। नाटक का नाम – आओ किसान किसान खेले
1- आप पार्टी के नेता आशुतोष के माफी मांगते हुए आंखों में आसूं थे । मगर जुबान में पूरी चालाकी थी। वह रोते हुए ऐसी बातें कह रहे थे कि जैसे किसी पहले से तैयार स्क्रिप्ट को पढ़ रहे हों। किसान की बेटी से माफी मांगते हुए विनम्रता का भाव होना चाहिए था। लेकिन वह माफी पूरी चतुराई के साथ कांग्रेस भाजपा को लपेट रहे थे। कांग्रेस भाजपा भी आप को लपेटती है इसलिए आशुतोष को हक था कि वह लपेटे । पर माफी के आवरण में आंसुओं का यह पैकेज मेल नहीं खा रहा था।
2- किसान किसान के खेल और लफ्फाजी में आप पार्टी भी पीछे नहीं। उत्तराखंड की आपदा में देश और राज्य के
14 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। करीब चार हजार परिवारों की जमीन पानी में चली गई। खेती बर्बाद हुई। पर आप पार्टी के नेता केजरीवाल एक दिन भी उत्तराखंड में लोगों का दुख दर्द पूछने नहीं आए। इनके पास पैसे का जुगाड करने के लिए अमेरिका जाने का टाइम था। खाडी देश का टाइमटेबल बनाने का समय था। बीस हजार प्रति व्यक्ति डिनर करने के लिए समय था। मोदी के खिलाफ कुछ क्लू मिल जाए इसके लिए बार बार गुजरात जाने का समय था। बनारस चुनाव लड़ने के लिए एकमहीने प्रचार करने का समय था। लेकिन उत्तराखंड के तड़पते बर्बाद हुए लोगों के लिए समय नहीं था। आज तक नहीं आए। कांग्रेस भाजपाइयों से इन्हें किस तरह अलग देखा जाए। क्या आप पार्टी बता सकेंगी कि दिल्ली चुनाव में कितने किसानों को टिकट दिया। और जिन सत्तर लोगों को मिला उनमें कितने करो़ड़पति हैं। कितने आम लोगों को टिक्ट दे पाई यह पार्टी
3- डेमेज कंट्रोल भी होता रहा। आज राजदीप सरदेसाई का बयान चौंकाता है कि अलवर में रेल से कूदने वाले किसान पर भी मीडिया का फोकस होता अगर उसमें केजरीवाल बैठे होते। राजदीप का बयान इस तरह है मानों आप पार्टी की वजह से ही गजेंद्र की आत्महत्या पर मीडिया ने फोकस किया हो। जबकि दिल्ली में किसी भी पार्टी का मुख्यमंत्री के सामने कोई व्यक्ति सरेआम आत्महत्या कर देता तो मीडिया इसी तरह फोकस करता। अगर यही बात भाजपा मुख्यमंत्री के सामने घटी होती तो कुछ जागरूक पत्रकारों ने बीबीसी डाट काम में त्वरित टिप्पणी भेज दी होती। और राजदीप सरदेसाई कहीं पूरे पेज का आर्टिकल लिखकर भाजपा के प्रति लोगों को सावधान कर रहे होते। इस तरह की कोशिश घटनाओं की तह में या उसकी गंभीरता में जाने के बजाय उसे पार्टी बनकर देखने की कोशिश के सिवा और कुछ नहीं। देश के लिए दिल्ली में मारा गया किसान या अलवर में रेल से कूद कर मरा किसान या बिहार में एक साथ तीस आत्महत्याएं निराशाजनक पहलू हैं। इन घटनाओं को समग्रता में देखना चाहिए। किसान की मौत जहां भी हो वह भाजपा कांग्रेस आप में बंटी हुई घटना नहीं। पूरे देश की स्थिति का ब्योरा है। किसान कहीं भी आत्महत्या करे वह पूरे देश पर सवाल है। याद नहीं आता कि राजदीपजी ने महाराष्ट्र में विदर्भ में आत्महत्या करने वाले किसानों पर कभी मार्मिक लेख लिखा हो। लेकिन शायद दिल्ली की घटना को कमतर बताने के लिए वह अलवर के किसान की बात कहने लगे। अलवर का किसान भी मरा तो उसकी हालत के लिए ये केवल दस महीने जिम्मेदार नहीं, पीछे के हालात भी तो जिम्मेदार है।
(लेखक पत्रकार हैं.)
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