हैदराबाद के समग्र साहित्य परिदृश्य पर सटीक और सार्थक चर्चा

हैदराबाद, 28 जुलाई 2014. [मीडिया विज्ञप्ति]

यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सभागार में साहित्य-संस्कृति मंच के तत्वावधान में प्रो. दिलीप सिंह की समीक्षा-कृति ‘कविता पाठ विमर्श’ का लोकार्पण भारतीय एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. एम. वेंकटेश्वर के हाथों संपन्न हुआ. लोकार्पण वक्तव्य में प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने कहा कि ‘कविता पाठ विमर्श’ के माध्यम से प्रो. दिलीप सिंह ने साहित्य की शैलीवैज्ञानिक समीक्षा के सर्वथा अछूते आयामों को उद्घाटित किया है. उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में हैदाराबाद के हिंदी और उर्दू के पुराने और नए 15 कवियों के व्यक्तित्व और कृतित्व का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है जो अपने आप में अनूठा है.

इस अवसर पर उच्च शिक्षा और शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित भाषाविज्ञान, हिंदी भाषा और साहित्य पर नई सोच की अर्धवार्षिक पत्रिका ‘बहुब्रीहि’ के ताजा अंक का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली से पधारे डॉ. सत्यकाम ने किया. उन्होंने ‘बहुब्रीहि’ को हिंदी और भारतीयता के समन्वयात्मक चरित्र की जोरदार अभिव्यक्ति मानते हुए कहा कि इसके द्वारा सिनेमा और मीडिया जैसे शब्द-प्रयोग के साहित्य से इतर क्षेत्रों पर भी सार्थक विमर्श सामने आया है.

साथ ही दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की हिंदी-तेलुगु द्विभाषा मासिक पत्रिका ‘स्रवंति’ के जुलाई अंक का लोकार्पण केंद्रीय हिंदी निदेशालय, दिल्ली से संबद्ध डॉ. एच. बालसुब्रह्मण्यम ने किया और कहा कि अपने स्थायी स्तंभों और दोनों भाषाओं के सृजन व समीक्षा की प्रस्तुति के कारण ‘स्रवंति’ समसामयिक साहित्यिक पत्रकारिता में विशेष पहचान बना चुकी है.

लोकार्पण समारोह के निर्देशक डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने इस आयोजन को ‘कविता पाठ विमर्श’ के बहाने हैदराबाद के हिंदी-उर्दू साहित्य के समग्र परिदृश्य पर सार्थक और सटीक चर्चा बताया जिसमें मखदूम मोईनुद्दीन से लेकर शशि नारायण स्वाधीन तक की कविताओं का मूल्यांकन किया गया.

प्रो. दिलीप सिंह ने अपने भावुकतापूर्ण उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि हैदराबाद की हिंदी कविताई और उर्दू शायरी में एक ख़ास तरह का सहज सलोनापन है जो विभिन्न भाषा-समुदायों के दैनंदिन व्यवहार की मिश्रित भाषा की सर्जनात्मकता के कारण अपनी ओर आकर्षित करता है.

समारोह की अध्यक्षता करते हुए ‘भास्वर भारत’ के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से नए हिंदी आंदोलन की दिशा प्रशस्त करने के लिए भाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा को साधुवाद दिया.

आरंभ में संयोजिका डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अतिथि-अभ्यागतों का स्वागत-सत्कार किया तथा अंत में डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू ने कृतज्ञता-प्रस्ताव रखा.

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