ओम थानवी
शाम पता नहीं कितने चैनल देखे, देखना चाहता था सूरत में कल जो हंगामा हुआ उस पर हाल के दलित और पाटीदार जागरण के संदर्भ से गुजरात की करवट लेती राजनीति पर कैसी चर्चा होती है। कम से कम नौ से दस बजे तक तो कहीं सुनने को नहीं मिली। अफ़सोस कि ज़्यादातर चैनल कपिल शर्मा के पीछे पड़े थे। गोया उनका प्रधानमंत्री को ट्वीट करना ही बड़ा अपराध हो गया।
बहस कपिल और बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) के भ्रष्टाचार पर थी, और चैनलों पर बचाव के लिए भाजपा प्रवक्ता तैनात थे? एकाधिक चैनलों पर तो एक संजू वर्मा ही थीं, जिनकी तीखी आवाज़, प्रवक्ताओं को मिली ट्रेनिंग के अनुसार, दूसरों के वक़्त में सेंध मारकर विषय को भटकाने में खप जाती रही। एक चैनल पर सबसे अहम संभागी महानगरपालिका के पूर्व प्रमुख खैरनार थे। उन्हें ठीक से बोलने नहीं दिया गया। फिर भी उन्होंने साफ़ कहा – बीएमसी भ्रष्टाचार का गढ़ है, नासूर है।
संजीदा एंकर तक कहते मिले कि जो भी हो कपिल ने रिश्वत दी क्यों? बेशक ग़लत किया बंधु। पर किसी ने अंततः उच्च स्तर पर बता दिया तो पोल तो खुली। रिश्वत अंतहीन देखकर उन्होंने प्रधानमंत्री को चेताने का साहस किया, इससे क्या उन्हें और महँगा पड़ जाना चाहिए? यह तो न न्याय हुआ, न सुशासन।
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