ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार –
संदर्भ – शेखर गुप्ता,पत्रकारिता नहीं मोदी की दलाली करते हैं – अरविंद केजरीवाल
दिल्ली में बीमारियों के चिंताजनक मामले में कितना ज़िम्मा शासन का है, कितना निकायों या अब प्रशासनिक मुखिया घोषित उपराज्यपाल का – यह फ़िज़ूल बहस है जो टीवी चैनलों पर चलती रहेगी। असल बात यह है कि बीमारियों के विकट हमले के बीच अधिकांश मंत्री एक साथ दिल्ली से बाहर कैसे रह सकते हैं? मुख्यमंत्री भी इटली से लौटते ही पंजाब चले गए। क्या पंजाब की प्राथमिकता दिल्ली से बड़ी है? बाक़ी मंत्री भी बयानों में ज़्यादा वक़्त खपाते हैं, ज़मीन पर तो काम ही देखा जाएगा जो नज़र आना चाहिए।
मुझे शेखर गुप्ता पर केजरीवाल का ट्वीट भी नागवार गुज़रा। हालाँकि मैं गुप्ता का बड़ा प्रशंसक नहीं हूँ, उन्होंने सोलह बरस मुझसे जनसत्ता का सम्पादन करवाया पर औपचारिकतः मुख्य सम्पादक का पदनाम तक अता नहीं फ़रमाया। पर उससे क्या, तथ्यों या विचारों पर आपत्ति ज़ाहिर करना एक बात होती है, लेकिन असहमति पर पत्रकार को राजनीतिक दलों का दलाल कह देना गाली देने के सिवा कुछ नहीं। यह काम तो भाजपा के प्रवक्ता हमारे साथ कर ही रहे हैं।
‘आप’ को लोग दूसरे दलों से अलग मानते हैं। कुछ लोग बुरों में कम बुरा कहते हैं और समर्थन जारी रखते हैं। मैं ख़ुद दिल्ली सरकार द्वारा भ्रष्टाचार, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण आदि मामलों में की गई कोशिशों की तारीफ़ करता हूँ और इसके लिए बुरा-भला भी सुना है। मगर वही शब्दावली केजरीवाल अन्य सम्पादकों-पत्रकारों के लिए प्रयोग करने लगे तो उनमें और भाजपा प्रवक्ताओं की ज़ुबान में क्या फ़र्क़ रह जाएगा? अच्छा हो केजरीवाल शेखर गुप्ता से खेद जताएँ और अपने ट्वीट वापस लें। अच्छे अख़बारों में भूल-सुधार का क़ायदा है; राजनेताओं को भी निस्संकोच भूल-सुधार करना चाहिए। @B