राजनीतिक विज्ञापनों से पीड़ित रेडियो का एक श्रोता
नमस्कार, मैं अरविंद केजरी….वाल आए कि इससे पहले रेडियो सिटी से शिफ्ट होकर बिग 92.7 एफ एम पर शिफ्ट होता हूं..वहां कांग्रेस के विज्ञापन कुछ इस तरह से कि अगर कांग्रेस नहीं सत्ता में होती तो पूरी दिल्ली अस्तबल,बूचड़खाना या ऐसी ही कुछ होती लेकिन वो दिल्ली नहीं होती जिसमे हम जी रहे हैं..वहां से उकताकर भागा तो फीवर पर बीजेपी की फेकू सीरिज. हद है यार.
आपलोग तो माध्यमों पर कौन सा विज्ञापन, कितना विज्ञापन आएगा वक्त-वेवक्त नियम झोंकते रहते हो, कभी गौर किया है..आपलोगों ने. दिनभर में जितने विज्ञापन कंडोम, डियो,रियल एस्टेट के नहीं आते, उससे कहीं ज्यादा आपकी पार्टी और आपके विज्ञापन आते हैं. आप साबित क्या करना चाहते हैं..क्या दिल्ली के मतदाता विज्ञापनों के आतंक से आपको वोट देगी.
बैक टू बैक पार्टियों के विज्ञापन कुछ इस तरह से आते हैं जैसे आपलोग आपस में शटल खेल रहे हो और अगर गौर से न सुनें तो पता ही नहीं चलती रानी झांसी, भगत सिंह, तांत्या टोपे की जीवनी प्रसारित हो रही है या कांग्रेस,बीजेपी या आप का विज्ञापन.. विज्ञापनों के इस अतिरेक को मैं दिल्ली के मतदाताओं के प्रति अपमान के रुप में लेता हूं. आपको उनकी बौद्धिक क्षमता पर यकीन करना चाहिए..ऐेसा थोड़े ही होता है कि मार ठेले जा रहे हो..हम बैल थोड़े ही हैं कि अभी सब निगलते चले जाएं और बाद में इत्मिनान से जुगाली करते रहेंगे.
दिल्ली का एफ एम रेडियो मेरे लिए पेनकिलर की तरह है. बकवास से बकवास और एक से एक भसड़ फिलर्स,शो और टॉक आते रहते हैं लेकिन उनके बीच मुझे गहरी उदासी में भी उत्साह मिलता रहता है. लगता है इस शहर में कोई है जो हमेशा मेरे साथ है. हम कभी सिमरन की बातों पर हंसते हैं, स्वाति की बातों पर मुंह बिचकाते हैं, सुहास और मन्नू को दमभर कूटने का मन करता है. घर से जितनी देर बाहर रहता हूं और कहीं ऑफिस या क्लासरुम में न हूं तो सिर्फ और सिर्फ एफ एम सुनता हूं..सुनने के भी अलग-अलग बहाने होते हैं. कभी फन के लिए, कभी भाषा के लिए, कभी लेख लिखने की नियत से, कभी भविष्य में काम आने की उम्मीद से रिकार्डिंग के लिए.
लेकिन पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक विज्ञापनों की जो लॉट गिरी है, यही एफ एम रेडियो पेनकिलर के बजाय पेन क्रिएटर बन गया है. रेडियो सिटी पर आम आदमी पार्टी के विज्ञापन से छूटकर जाओ तो फीवर पर कांग्रेस वहां से भागो तो ओए 104.8 एफ एम पर बीजेपी का स्वामी नहीं सेवक का …यापा. मतलब अगर आप एफ एम रेडियो सुनना चाहते हो तो इन्हें बर्दाश्त करना ही होगा..सिर्फ एफ एम रेनबो और गोल्ड से अपना काम तो चलता नहीं. इतनी बुरी तरह घेरने का काम तो दुश्मन भी नहीं करते.
(स्रोत – एफबी)