मीडिया समझे सचिन की विदाई मातम नहीं

सचिन की विदाई

जब कोई लीडर जाता है तो सलामी दी जाती है। हर कोई उसका अभिवादन करता है। लेकिन सचिन को सलाम अविस्मरणीय है। वास्तव में सचिन की विदाई को देशभर में एक उत्सव की तरह मनाया जा रहा है। हर ओर उत्साह, लोग काम छोड़कर टीवी पर जुटे हैं। कहीं कार्यक्रम, कहीं गोष्ठी, कहीं गुब्बारे उड़ाए जा रहे हैं। यह सचिन के प्रति सम्मान और अद्भुत प्रेम का प्रतीक है। और हो भी क्यों न। क्रिकेट का भगवान को क्रीज पर खेलते देखने का अंतिम मौका जो है। सचिन अपना आखिरी टेस्ट मैच अपने घरेलू मैदान मुंबई में खेल रहे हैं। विश्व भर के क्रिकेट दिग्गज उनके योगदान और उपलब्धियों की चर्चा कर रहे हैं। उनके मैच को देखने स्टार और नेताओं का जमावड़ा लग रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार ने सचिन के संन्यास की तुलना महात्मा गांधी के जीवनावसान से की है। वास्तव में एक पीढ़ी ने सचिन को खेलते देख क्रिकेट को सीखा है। इस प्रकार की खेल प्रतिभा, अनुशासन, धैर्य और शालीनता का उदाहरण दूसरा नहीं मिलेगा। लेकिन मेरा मानना है कि सचिन की विदाई पर खेल प्रमियों की मायूसी का अवसर बिलकुल नहीं है। सचिन क्रिकेट से विदा हो रहे हैं। लेकिन क्रिकेट को कई नए और नायाब हीरे भी मिल रहे हैं। यह वो हीरे हैं जिन्हें सचिन ने ही तराशा है। बस ऐसे मौके पर भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सचिन को सम्मान के साथ क्रिकेट से विदा होने की संस्तुति करनी चाहिए।

लेखक- कुलदीप सिंह राघव, युवा पत्रकार एवं लेखक. अमर उजाला समाचार पत्र से जुडे हैं । बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पोस्टग्रेजुएट कर रहे हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित।

ई-मेल- kuldeepyfn@gmail.com
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