प्रमोद कुमार तिवारी
एक ऐसे दौर में जबकि सबको पता है कि महानताएं केवल अर्जित ही नहीं प्रायोजित भी होती हैं इन महानताओं पर बात (सवाल) करने का अधिकार जनतांत्रिक देश में मिलना चाहिए। क्या ये माना जाए कि सचिन की महानता में कल की ‘थैंक यू’ पार्टी में जुटनेवाले महान (?) लोगों (अंबानी, पवार, गावस्कर, अमिताभ, श्रीकांत, रवि शास्त्री……. आदि आदि) की भी भूमिका रही है?
टेस्ट और वन डे में जान लड़ा देने वाले और दोनों में 10000 से अधिक रन बनानेवाले दीवार द्रविड़ के संन्यास पर मीडिया कहां सो रही थी? हाल के आईपीएल में द्रविड़ का फार्म आज भी उनमें सचिन से ज्यादा क्रिकेट बचे होने का प्रमाण दे रहा था। फिजिकल फिटनेश और शालीनता के मानक पर भी वे कहीं से उन्नीस नहीं ठहरते हैं?
स्पेशल लक्ष्मण ने क्या बिगाड़ा था कि उन्हें विश्व कप के एक भी मैच में शामिल नहीं किया गया? और उनके संन्यास पर भी मीडिया की तबियत खराब नहीं हुई थी?
या फिर टीम का नक्शा बदल देनेवाले गांगूली का ही क्या दोष था? क्या ये तय माना जाए कि इस 21वीं सदी में भी भारत में रत्न किसी और द्वारा बनाए और प्रचारित किए जाते हैं? और बाकि जनता उसे हुकुम मान कर स्वीकार कर लेती है?
(स्रोत-एफबी)