पंकज श्रीवास्तव
‘हिंदी दिवस’ पर हिंदी की इस क्रांतिकारी भूमिका को सलाम-
दिल्ली में 1997 में शुरू हुआ ‘सम्यक प्रकाश’न अब तक एक करोड़ से भी ज्यादा हिंदी की किताबें बेच चुका है। ये प्रकाशन, मूख्य रूप से दलित और बौद्ध साहित्य प्रकाशित करता है। प्रकाशक बौद्ध शांतिस्वरूप बताते हैं कि डा.अबेंडकर लिखित “बुद्ध और उनका धम्म” की सवा लाख से ज्यादा प्रतियां सात साल से भी कम अवधि में बिक चुकी हैं। 2006 में पहली बार प्रकाशित इस किताब के अब तक 22 संस्करण निकल चुके हैं।
ये सिर्फ एक प्रकाशन का आंकड़ा है। ऐसे न जाने कितने प्रकाशन हिंदी जगत में उथल-पुथल लाने में जुटे हैं और हिंदी उसका माध्यम है।
बहरहाल हिंदी के नाम पर सरकारी पैसा डकारने वाले, विदेशयात्राएं करने वाले, अकादमियां चलाने वाले इसकी ओर भूलकर भी नहीं देखेंगे। इन प्रकाशकों को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कभी पुरस्कृत नहीं किया जाएगा।.. लेकिन हिंदी जानती है कि धुंध कहाँ है और चमक कहाँ.!
…ये सबक उन हिंदी लेखकों के लिए भी है जो हिंदी में ‘पाठक न होने’ का रोना रोते रहते हैं….काश कभी वे आईने के सामने खड़े होकर सोचते कि वे जिनके लिए लिखने का दावा करते हैं, वे उनके लेखन से जुड़ाव महसूस क्यों नहीं करते..? या कि उनके प्रकाशक किताबों के दाम इतना क्यों रखते हैं कि उन्हें खरीद पाना आम हिंदी पाठक के बूते के बाहर हो जाता है..? क्या किसी बड़े लेखक को किसी प्रकाशक से इस बात पर लड़ते देखा गया है कि उसकी किताब का दाम कम से कम रखा जाये..? क्या इस मुद्दे पर किसी लेखक ने प्रकाशक से अनुबंध तोड़ा है..?
खोट हिंदी में नहीं आपकी नीयत में है पार्टनर…
(पंकज श्रीवास्तव के एफबी से साभार)