पत्रकारिता के प्रशिक्षण के नाम पर लोगों को गुमराह करने की घिनौनी कोशिश
युवा पत्रकार अखिलेश कुमार ने लेख लिखकर यह आक्रोश व्यक्त किया है. लेख में लिखी सारी बातों से सहमति न होने के बावजूद हमने संपादन करना ठीक नहीं समझा. जरूरी है कि युवा पत्रकारों के आक्रोश को दिग्गज पत्रकार भी समझें और जाने – मॉडरेटर
अखिलेश कुमार
दावों का पोस्टमार्टम : गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में दस दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर मासूम बच्चों को गुमराह करने की घिनौनी कोशिश 19 अक्टूबर से शुरु होने जा रही है. एक तरफ हजारों की संख्या में मासूम युवाओं की फौज रोजगार के लिए दिल्ली में दर-दर भटक रहा हैं. वहीं दूसरी तरफ मीडिया के वर्तमान लकवाग्रस्त हालात पर चुप्पी साधने वाले (कुछ कॉरपोरेट के अंगरक्षक) ओम थानवी, राहुलदेव, राजेश रपरिया, रामबहादुर राय, अनुपम मिश्र, अरविन्द मोहन, प्रियदर्शन, अरुण कुमार त्रिपाठी, संजयदेव, प्रताप सोमवंशी वरिष्ठ पत्रकार मार्गदर्शन के नाम पर मासूम युवाओं को ठगने जा रहे है. ये कार्यक्रम 19 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक प्रतिदिन संध्या 5.50 से 7.30 तक चलेगी. इन सभी लोगो में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके पास नौकरियां नहीं है. लेकिन बच्चों को पत्रकारिता में आने और सरोकार की बात लिखने की कला को समझाने जा रहे हैं.
दरअसल इसमें रजिस्ट्रेशन के नाम पर रुपये भी वसूलने की कोशिश की जा रही है. एक तरफ पूरा समाज मीडिया के पूंजीवादी चरित्र से परेशान है. दूसरी तरफ ये कॉरपोरेट के दलाल पत्रकारिता में आने के लिए मासूम बच्चों के साथ धोखाधड़ी और अन्याय का ज्ञान देने जा रहे है. ओम थानवी जरा बताए कि जनसत्ता में आवेदन लिए जाने के बाद आपने कितने छात्रों को टेस्ट परीक्षा के लिए बुलाया था. एक पत्रिका में जीवंत रिपोर्ट छपवाने के लिए कितना मानसिक उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है. वो तो वही लोग जानते है. ये लोग उस समय पहचानने से कटने लगते हैं. समय मिलने पर पत्रकारीय मुल्यों का ज्ञान देने से नहीं चूकते. इन लोगों का सार्वजनिक रुप से बहिष्कार किया जाना चाहिए. हजारों पत्रकार इस घिनौनी व्यवस्था में 8-9 हजार में जिदंगी की अमूल्य जवानी को एंकर, बाइट विजूअल के हवाले कर चुके है. दूसरी तरफ अनजान युवाओं को जाल में फंसाकर उनके साथ अन्याय करने की घिनौनी कोशिश का बहिष्कार किया जाना चाहिए. याद कीजिए उस पल को जब नोयडा में आईबीएन-7 के खिलाफ हुए प्रदर्शन का जिसमें ये महारथी लोग बोलने से भी परहेज कर रहे थे. फिर बच्चों को प्रशिक्षण के नाम पर ठगने क्यों जा रहे हैं?
बताया जा रहा है कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र में आने वाली नई पीढ़ी के अंदर पत्रकारिता और लेखन की सार्थक दृष्टि पैदा करना है. बहरहाल तमाम कॉरपोरेट के दलालो को पता होगा कि जनसत्ता में एक रिपोर्ट छपवाने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है. रामबहादूर राय की पत्रकारिता कितना सरोकारी है वो तो सभी को पता है. वर्तमान में लकवाग्रस्त मीडिया पर आंख मूंदकर कविता पाठ करने वाले कॉरपोरेट के अंगरक्षक नये बच्चों में उनके अंदर छिपे मिशन भाव को जगाने चले हैं. जो लोग पढ़ाने के लिए आ रहे है. उनमें से कितने लोगो ने मिशन की पत्रकारिता की है. ये सभी जानते है. फिर भी ये लोग थोथी दलील देने से बाज नहीं आ रहे हैं.
पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग जीने के लिए तड़प रहा है और दूसरी तरफ मिशन वाली पत्रकारिता का जुमला दोहराया जा रहा है. कॉरपोरेट के आगे-पीछे चलने वाले ये मठाधीश लोग पूंजी के गोद में खूद को पाल रहे है. वही 8-9 हजार पर मनरेगा के मजदूरों जैसे पत्रकारों के साथ मानसिक शोषण करने में इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता है. कॉरपोरेट के गोद में मोटी कमाई करने वाले ये लोग मिशनवाली पत्रकारिता का नाटक अभी तक करने में लगे है.कुछ दिनों में जब उन मासूम बच्चों को नौकरी नहीं मिलेगी तो संवेदनशीलता, राष्ट्रभक्ति सत्य, शांति, अहिंसा और देशभक्ति की बात करने वाले पहचानने से भी इनकार कर देगें.
कहा जा रहा है कि कार्यशाला में ऐसे छात्र प्रतिभागी के रूप में शामिल हो रहे हैं जो पत्रकारिता को अपना कैरियर बनाना चाहते हैं. लेकिन कैरियर के नाम पर दिग्भ्रमित करने वाले ये बाबा लोग मासूम बच्चों के साथ धोखाधड़ी कब तक करते रहेंगे? मृग-मरीचका के समान बायोडाटा लेकर भटक रहे हजारों युवाओं के साथ कैरियर के नाम पर धोखाधड़ी हो चुकी है. लेकिन अब होने नहीं दिया जाएगा. इन लोगों का सार्वजनिक मंचो से बहिष्कार किया जाना चाहिए.
पत्रकारिता हर कीमत पर—-अखिलेश कुमार
अखिलेश कुमार जी, कुछ लिखने या बोलने से पहले उस विषय में पूरी जानकारी कर लेनी चाहिए जिसके बारे में लिखने जा रहे हैं. अगर अपना फ्रस्टेशन ही निकालना था तो और भी बहुत से मंच हैं.बेहतर तो ये होता कि पहले आप इस वर्कशाप को ज्वाइन करते और उसके बाद उसके बारे में कुछ लिखते. आतिउत्साह हर जगह अच्छा नहीं होता. हो सकता है कि यहां मंच पर पत्रकारिता के बारे में जानकारी देने कई ऎसे लोग आएं जो व्यक्तिगत रूप से आपको न पसंद हों. लेकिन वो कैसे इससे ज्यादा अहम ये है कि आप उनसे सीखते क्या हैं, और इसमें कोई दो राय नहीं कि जो वक्ता इस वर्कशाप में आ रहे हैं वो जानकार भी हैं और अनुभवी भी.