अमिताभ श्रीवास्तव
सचिन बेशक महान खिलाडी हैं और सर्वश्रेष्ठ सम्मान के हक़दार भी लेकिन काश ध्यानचंद, गावस्कर और कपिल देव की सफलताओं के शीर्ष के दौर में भी विज्ञापनों का ऐसा ही बाज़ार और टेलीविज़न न्यूज़ चैनल रहे होते. 24 घंटे दिखा- दिखा के ऐसा भावुक माहौल बनता इनके लिए भी सरकार शायद इन्हे भी भारत रत्न देने का ऐलान कर देती.
मैं सचिन की किसी से तुलना नहीं कर रहा हूँ न ही उनकी महानता को किसी से कमतर कह रहा हूँ. मेरा आशय सिर्फ इतना है की सचिन के दौर में उनकी नैसर्गिक और अर्जित महानता का गुणगान करने के लिए और उनको भारत रत्न दिलाने के लिए एक किस्म का मीडिया आधारित और प्रायोजित अभियान चलाने और सरकार पर परोक्ष दबाव डालकर इस महत्वपूर्ण विषय पर राय बनाने के जो साधन उपलब्ध रहे हैं वो उनके किसी पूर्ववर्ती के लिए तमाम प्रशंसकों के बावजूद सुलभ नहीं थे.
गावस्कर और कपिल ने भी खेल के ज़रिये नवाब बनने की कहावत और मध्य वर्ग के नायक होने को चरितार्थ कर दिखाया था लेकिन उस समय तक विज्ञापनों का बाज़ार इतना तगड़ा और प्रभावशाली नहीं था और न ही टीवी चैनलों के ज़रिये माहौल बनाने कि सुविधा.
(स्रोत – एफबी)