आकाशवाणी और दूरदर्शन रचनात्मक मंच की जगह सरकारी तबेले में बदल गए हैं

दूरदर्शन और आकाशवाणी के वर्तमान हालत पर धीरज कुलश्रेष्ठ की तीन टिप्पणियां :

आकाशवाणी और दूरदर्शन .. रचनात्मक मंच की जगह सरकारी तबेले में बदल गए…रिकार्ड गिरावट समय में ये नष्ट हुए…इनके दर्जनों अफसर नोटों के बिस्तर पर सोते हुए धरे गए..क्रियेटिव लोगों ने खुद ही बाहर का रास्ता नाप लिया…जिन्होंने हिम्मत नहीं दिखाई ..वे फ्रस्टेशन का शिकार हो गए…कोढ में खाज ये कि.. तिवारी जैसे मंत्रियों ने इसे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पूरी करने का मंच बना दिया…क्या मैं गलत हूं..पार्थ ?

आज भी बचपन में आकाशवाणी पर हवामहल में सुने नाटक स्मृतियों में अटके हैं…जयपुर के नाटकों का तो विशेष जलवा था…उस जलवे के लिए…गंगा प्रसाद माथुर,मानक चंद डांगी,नन्द लाल शर्मा और मदन शर्मा जैसे समर्पित दिग्गजों को दिल से सलाम..सुबह सुबह यह गुडमार्निंग अच्छी है न..पार्थ

मीडिया में कभी आकाशवाणी का जलवा था…अखबारों से ज्यादा लोकप्रियता और विश्वसनीयता थी..उसके हर कार्यक्रम का अनूठा मुकाम था…पर वक्त के साथ सब धूलधूसरित हो गया…बदलती तकनीक और आस्वाद के चलते दूरदर्शन ने राज किया…महाभारत के प्रसारण के समय सडकों का सूना हो जाना आज मिथक लगता है…पर ये ताज भी छिन गया..इन लोकप्रिय कथित पब्लिक प्रसारकों की बर्बादी का जिम्मेदार कौन है ?

(स्रोत – एफबी)

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