डॉ. प्रीत अरोड़ा
मेरा एक सवाल आप सभी से कि बड़ा और सुप्रसिद्ध लेखक होने से क्या उसे यह अधिकार मिल जाता है कि वह कभी भी और किसी को भी लिखने से रोके और धमकी दे और तो और जिन जिन पत्रिका में वह प्रकाशित हो रहा है वहां भी फ़ोन करके संपादक को उसको प्रकाशित करने से रोक दे। मित्रों कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हो रहा है ।एक ऐसी ही मानसिकता वाले लेखक मुझे फ़ोन करके लिखने से मना कर रहे हैं।क्योकि उनका कहना है कि मै सिख परिवार से हूँ और सिख परिवार से होने पर मै सही तरह से हिंदी में नहीं लिख सकती इसलिए मै लिखना बंद कर दूँ ।’
इतना सुनने के बाद मैंने उनको सिर्फ यही बात बोली कि ,’ हिंदी भाषा किसी की निजी सम्पति नहीं है ।मुझे हिंदी से प्रीत है इसलिए मै बराबर लिखूगी आप ने जिस अदालत में केस डालना है डाल लीजिये ।मैंने भी ठान लिया है कि मै भी लिखने से पीछे नहीं हटने वाली । क्योकि साहित्य कभी किसी से भेदभाव नहीं करता यह तो मूर्ख इंसान है जो साहित्य को भी अपनी सम्पति मान लेता है। ‘
आज की यह वार्ता फेसबुक पर डालने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कृपया भाषा को लेकर अपनी निजी सम्पति न समझे ।क्योकि ऐसा करके आप किसी को आगे बढने से कभी नहीं रोक सकते। बल्कि आप हम युवा लेखकों के आदर्श बनकर हमे भी सही रास्ता दिखाए
अपनी दो स्वारचित पंक्तियाँ अंत में कहुगी
सोच बदलेगी , समाज बदलेगा
युवा शक्ति के प्रयास से
पूरा हिन्दोस्तान बदलेगा
डॉ प्रीत अरोड़ा
(स्रोत-एफबी)