संपादक कुर्सी बचाने में लगे हैं और मालिक मीडिया फैक्ट्री

संपादक कुर्सी बचाने में लगा है, मालिक अपनी अख़बार-टीवी वाली फैक्ट्री बचाने में, रिपोर्टर इज़्ज़त बचाने में लगा है और राजनेता अपनी तिजोरी बचाने में। ये मीडिया, वो मीडिया। लूटो और खाओ। हम हिंदुस्तानी गुस्सा कर के भी क्या कर लेंगे, पहले तो रोज़ी रोटी देखनी होगी। लगता है ईमानदार सिर्फ वही बचा है, जिसे मौका नहीं मिला। बाकी देश को बचाने में सरहद पे सिर्फ सेना लगी है। देश के अंदर रहने वाले तो मौका मिलते ही उन्हें भी बेच देते हैं। कभी ताबूत घोटाला, कभी बोफोर्स घोटाला, कभी जैकेट घोटाला और पता नहीं कितने घोटाले!!!

बहरहाल आप-हम अपनी दाल रोटी की फ़िक्र करें। देश की फ़िक्र सिर्फ सोशल मीडिया पे होती है। फिर भूल जाते हैं हम और तीज-ईद की बधाई देने में जुट जाते हैं। कुछ नहीं मिला तो एफबी दोस्तों को जन्मदिन की मुबारकबाद दे के ही काम चला लेते हैं।

फिर टीवी देखते हैं, किसी नए तमाशे की तलाश में। आज कौन हलाल हो रहा है। आज कौन से मायालोक के दर्शन होंगे, किस अद्भुत-अविश्वसनीय-अकल्पनीय की व्याख्या होगी, किसको डीएनए टेस्ट में पास किया जाएगा, प्राइम टाइम में कौन भारी पड़ेगा, किस दरवाजे पर कितनी ज़ोर से दस्तक होगी और newshour बोलके कौन कितना noise दो घंटे फैलाएगा।

इसके बाद हम सो जाएंगे। एक गहरी नींद में। ख्यालों की सुनहरी दास्तां लेकर। दूध की नदी बहाएंगे और सोने की चिड़िया उड़ाएंगे। फिर मसुवाती नींद सुबह अचानक खुलेगी और हम नाड़ा बाँध अचानक से तैयार हो जाएंगे। दुनियादारी की गली जाने को। एक-दूसरे को कुचलते हुए। बस बीच-बीच में सोशल मीडिया पे आते रहेंगे। चिंता जताते रहेंगे, पीछे से माल कूटते रहेंगे, आगे से नैतिकता झाड़ते रहेंगे, दाएं से आग लगाते रहेंगे, बाएं से सद्भावना का सन्देश देते रहेंगे। फिर टीवी खोलेंगे। उसी नूरा-कुश्ती का मज़ा लेंगे, ज्ञान की दुनिया में गोते लगाएंगे, सजग नागरिक होने की आहुति देंगे, फ़र्ज़ निभाएंगे और डाटा पैक ऑफ कर सो जाएंगे। फिर एक सपना आएगा, एक बंगला न्यारा बनाएंगे तभी बगल वाला चिल्लाएगा कि भैया-दे दो हमारा पांच रुपैया बारह आना…और फिर जिसका लिया-कभी न दिया की रट लगाते हुए हमारी नींद खुल जाएगी। कसमसाते हुए फिर कस के नाड़ा बांधा जाएगा और फिर शुरू हो जाएगी Rat Race. भागते रहो-भागते रहो। रुके तो एक्सीडेंट का खतरा है, पीछे वाला ठोक देगा, चालान कटेगा अलग। तो भागते रहो। यही दुनिया है, यही देशप्रेम है, यही तरक्की है, यही जीवन है, यही ज्ञान है और यही बौद्धिकता है।

(पत्रकार नदीम एस अख्तर के एफबी वॉल से)

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