वेद उनियाल
कभी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पत्रकारों को डिनर में बुलाते हैं जहां छप्पन प्रकार के व्यंजन होते हैं। कभी वह पत्रकारों को झिड़क देते हैं कि दफा हो जाओ यहां से। सवाल विजय़ बहुगुणा के नकचढ़ेपन और अहंकार का नहीं। सवाल पत्रकारों का है कि क्या वह हमेशा थाली के बैगन बने रहेंगे। कितना और अपमान सहेंगे। आखिर इन नेताओं के इस तरह का किसने बनाया । सबसे पहले तो इन नकचढे नेताओं को सर सर कहना छोड़ो। जानकारी के नाम पर पौड़ी श्रीनगर का अंतर पता नहीं और सर बने हुए हैं।
Sangeeta Thalwal ये पत्रकार लोग उत्तराखंड के बारे मे सावल कम और मुख्यमंत्री राहत कोस से मदद ज्यादा चाहते है ।
Ved Uniyal संगीताजी पत्रकारों ने बहुत स्थिति को खराब किया है। आज स्थिति यह है कि लोग हम पत्रकारों को दलाल कहने लगे हैं।
Atul Bartariya तमाम लोग को दलाली का ही काम कर रहे हैं
वेद उनियाल : कहां गए वो नेता जिन्हें मंत्रमुग्ध होकर सुना जाता था। घंटों जिनके लिए प्रतीक्षा की जाती थी। लोहिया, वाजपेयी, इंदिरा गांधी, एचएन बहुगुणा, जगजीवन राम, वो जमीनी नेता थे, समाज से घुले मिले थे। उन्हें देश दुनिया का पता था। साहित्य संगीत कला हर क्षेत्र के लिए उनके मन में इज्जत थी। आज हालत यह है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री को लाचार होकर कहना पड़ता है, प्लीज रुकिए बस पांच मिनट, राहुलजी की आवाज तो सुनकर जाइए। बहनों आप तो रुको। प्लीज। हे भगवान इस देश के नेता अभी कैसे कैसे दिन दिखाइएगें। जिस अंदाज से नेताग्री हो रही है वो शैली भारत जैसे देश की नहीं है। कब समझेंगे मनीष तिवारी, राजीव शुक्ला कपिल सिब्बल जैसे अहंकारी।