हाल ही में बीबीसी को तीन वरिष्ठ पत्रकारों उमर फारुख,रामदत्त त्रिपाठी और मणिकांत ठाकुर ने अलविदा कहा. उनकी विदाई समय के पहले हुई. विदाई की वजह अंदरूनी खिंचातीनी और बीबीसी के नए संपादक का रवैया रहा. रामदत्त त्रिपाठी ने अपने एफबी वॉल पर इस संदर्भ में लिखा कि बीबीसी की नयी पॉलिसी से वे असहमत थे और इसलिए उन्होंने संस्थान छोड़ना ही मुनासिब समझा. उसी स्टेट्स के बाद बीबीसी में पूर्व में काम कर चुके और सीएनबीसी-आवाज़ से जुडे अनुभवी पत्रकार आलोक जोशी ने एक कमेंट किया है जो बीबीसी में मची अन्धेगर्दी को बताने के लिए काफी है.
आलोक जोशी :
लंबे अनुभवों से गुजरे हैं। ज़िंदगी ने उन्हें पकाया ही नहीं है, बेहद शिष्ट और विनम्र भी बनाया है। इसीलिए बीबीसी से वक़्त से पहले रिटायर होने की कड़वाहट उनके स्टैटस में नहीं झलकती। कह रहे हैं बीबीसी विश्व की एक अद्वितीय और महान संस्था है। लेकिन सच क्या है वो खुद भी जानते हैं। बीबीसी में जितना भाई भतीजावाद, जितना अंधेर और जैसी चापलूसी चमचागिरी चलती है, वो अगर भारत के किसी अखबार या चैनल में हो जाए तो मीडिया के मतवाले उनका जीना हराम कर देंगे। .. ऐसा नहीं है तो किसी तर्क से सिद्ध कीजिए कि उमर फारुक, मणिकांत ठाकुर और राम दत्त त्रिपाठी के सामने ऐसी स्थिति क्यों आई कि उन्हें नौकरी छोड़ने या रिटायर होने का फैसला करना पड़ा। और उनसे पहले न जाने कितने लोगों के सामने ऐसी ही स्थिति और भी आ चुकी है।