-अनंत विजय,वरिष्ठ पत्रकार-
सेक्यूलरिज़्म के चैंपियन, फासीवाद को लेकर लगातार चिंतित चित्त वाले मित्र, असहिष्णुता को लेकर छाती कूटनेवाले दोस्त, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का दावा करने वाले साथी, इन सभी का दो दिन से इंतजार कर रहा था कि शायद कुछ बोलेंगे लेकिन अपेक्षा के अनुरूप उन्होंने चुप्पी को ही चुना ।
मामला है बांग्लादेश में टैगोर और शरत चंद्र की रचनाओं को पाठ्यक्रम से हटाने का ।
कट्टरपंथियों ने दलील दी कि इन रचनाओं से हिंदू धर्म के उपदेश आदि हैं ।
दबाव में आई बांग्लादेश सरकार ने इन रचनाओं को हटा दिया । कहां हो कॉमरेड ? घिग्घी क्यों बंधी हुई है ?
(लेखक के एफबी वॉल से साभार)