दंगों में दोषी माया कोडनानी की खबर में नरेंद्र मोदी का जिक्र क्यों नहीं है?

नदीम एस अख्तर

कई बार ये लगता है कि इस देश का कानून अमीर-गरीब और सामाजिक-राजनीतिक हैसियत देखकर फैसला करता है. अब गुजरात हाई कोर्ट ने नरोदा पाटिया दंगों में दोषी और 28 साल की जेल काट रही माया कोडनानी को मेडिकल ग्राउंड पर बेल दे दी. सोचिए, जिस तरह का अपराध माया कोडनानी पर साबित हुआ है, अगर उस मामले में कोई आम आदमी अंदर होता तो क्या उसे इतनी आसानी से स्वास्थ्य आधार पर बेल मिल जाती. ???

मीडिया में खबर तो छपी है लेकिन मोदी के गुणगान का ये माहौल है कि भाई लोग खबर लिखने का ये मूल सिद्धांत भूल बैठे हैं कि थोड़ा सा माया कोडनानी के बैकग्राउंड के बारे में भी खबर में बता दिया जाए. बहुत दिन हो गए. आम आदमी की छोड़िए, मीडिया में किसे याद रहता है कि कौन है माया कोडनानी और क्यों उसे ये सजा हुई थी, जो अब हाई कोर्ट ने ‘उदारता’ दिखाते हुए उसे बेल दे दी है. इस एंगल पर भी स्टोरी होनी चाहिए थी कि एसआईटी ने कोडनानी की बेल का जो विरोध किया (दिखावे के लिए ही सही ??!!), उसमें कितने लचर तर्क दिए गए कि हाई कोर्ट ने कोडनानी को फिलहाल जेल से बाहर भेजना उचित समझा. इसकी पूरी छानबीन होनी चाहिए थी, मीडिया में. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ना होगा. नरेंद्र मोदी का मामला है, सो प्लने रूटीन खबर बना दो. वैसे मोदी पर फिदा और उनकी एक-एक सभा, एक-एक बाइट को दिखाने वाले टीवी मीडिया ने भी इस खबर को तवज्जो नहीं दी. हैरानी नहीं होनी चाहिए क्यों…

खबर में नरेंद्र मोदी का जिक्र क्यों होना चाहिए, इस बात पर आप बहस कर सकते हैं. लेकिन सिम्पल है. मोदी पीएम इन वेटिंग होने के नाते जितनी सुर्खियां बटोरते हैं और इस कड़ी में जब गुजरात दंगों का जिक्र चलता है, तो जाहिर है कि चुनावी मौसम में माया कोडनानी की खबर में मोदी का जिक्र ना करना खबर की आत्मा छीन लेने के बराबर है. ये खबर का बलात्कार है. नरेंद्र मोदी का उल्लेख इसलिए भी जरूरी है कि कोडनानी को सजा होने के बाद जिस गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार ने उसके लिए गुजरात हाई कोर्ट से मौत की सजा मांगी थी, एक महीने के अंदर नरेंद्र मोदी की सरकार पलट गई. लगभग 100 मासूम लोगों की हत्या में दोषी माया कोडनानी के लिए मौत की सजा मांगने का फैसला नरेंद्र मोदी ने वापस ले लिया. तो इस खबर के माध्यम से मोदी की असलियत देश के सामने एक बार फिर लाने का मौका था ताकि कमजोर याददाश्त वाली यहां की जनता सही फैसला ले सके.

कोडनानी ने कैसा घृणित अपराध किया था, इसकी झलक उसके विकीपीडिया पेज पर भी मिलती है.

“Kodnani was convicted of orchestrating the massacre of 95 people during the Naroda Gam and Naroda Patia riots that followed the Godhra train burning in February 2002.[2][3] Witnesses testified that she handed out swords to Hindu rioters, exhorted them to attack Muslims and at one point fired a pistol,[7] and, according to testimony in the court, mobile phone records indicated that she was present at the scene of the riots. She was tried and, on August 31, 2012, convicted of murder and conspiracy to commit murder by a court in Ahmedabad and was sentenced to 28 years in prison.[7][8] On 17 April 2013, the Gujarat government decided to seek death penalty for Maya Kodnani by filing an appeal in the High Court against the Special Court’s judgement in the case.[9] On May 14, 2013, the Gujarat government subsequently withdrew its decision to seek the death penalty for Maya Kodnani.[10]
Personal life”

http://aajtak.intoday.in/story/naroda-patiya-riot-case-kodnani-gets-bail-1-746897.html

नदीम एस अख्तर
नदीम एस अख्तर

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