जब आप गहने पहनेंगी, फेरे लेने का मन करेगाः तनिष्क
लोगों की जिन मानसिकताओं और मान्यताओं को बदलने में सालों लग जाते हैं, बाजार उसे कैसे एक से डेढ़ मिनट के विज्ञापन के जरिए हडपने की कोशिश करता है, तनिष्क जूलरी का विज्ञापन इसका एक नमूना है. जिस भारतीय समाज में पहली ही बार में लड़की की शादी का होना मुश्किल है, दुहाजू होना एक असामान्य स्थिति है, परित्यकता,तलाकशुदा या विधवा को मंडप क्या किसी भी ऐसी जगह से कोसों दूर रखे जाने का रिवाज रहा है, इस विज्ञापन में उसकी न केवल दोबारा शादी होती दिखायी जा रही है बल्कि उसके साथ पांच-छह साल की बच्ची को भी फेरे लेने की इच्छा को पूरा करते दिखाया गया है.
मां की देखादेखी ये बच्ची भी गहने पहनना चाहती है. उसके बाद उसकी ही तरह सात फेरे लेने की जिद करती है जिसकी उसकी मां तो मना कर देती है लेकिन होनेवाले पिता गोद में उठाकर उसकी ये इच्छा पूरी करते हैं. सबकुछ इतना स्वाभाविक तरीके से दिखाया जाता है कि कहीं से नहीं लगता कि इस स्थिति तक आने में इस समाज में न जाने कितने साल खेप दिए. बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए, 13-14 साल पहले तक 20 रुपये की सैनिटरी नैपकिन इसलिए बेचनी शुरु की गई ताकि पीरियड शुरु होने और सार्वजनिक रुप से लोगों के जान लेने से घर की इज्जत बचायी जा सके. लेकिन इस विज्ञापन के जरिए यही टीवी समाज इतना आगे निकल गया. ये अलग बात है कि “इज्जत का सवाल” के ऐसे दर्जनों विज्ञापन अब भी जारी हैं.
एकबारगी तो इसी तनिष्क का विज्ञापन दर्शकों पर इसके पहले के अमिताभ और जया बच्चन के सीरिज विज्ञापन से ज्यादा गहरा असर और सोशल इंजीनियरिंग करता जान पड़ता है लेकिन इस बारीक रेशे पर गौर करें तो विज्ञापन अपना चरित्र जाहिर कर देता है- सोच को अगर बदलना है तो जूलरी पहनने होंगे लेकिन इसके साइड एफेक्ट ये भी है कि जो इसे पहनेगा, फेरे लेने का मन करेगा, चाहे आपकी उम्र पांच-छह साल ही क्यों न हो. इमोशनल अपील का ये विज्ञापन फिर वहीं जाकर अटक जाता है जहां सबसे ज्यादा बदलने की जरुरत है. उपभोक्तावादी समाज और बाजार के खांचे से बिना छेड़छाड़ किए उसके भीतर क्रांति और बदलाव तो ऐसे ही आड़ी-तिरछी शक्ल में आते हैं.
(मूलतः तहलका में प्रकाशित)