शायक आलोक
तमाशा मेरे आगे
चिन्हित भारतीय बौद्धिकता अपने पतन पर है और हमें शॉक देती हुई .. दामिनी प्रकरण पर अरुंधती राय का पहला बयान था कि लड़की सवर्ण और मिड्ल क्लास है इसलिए देश इतना शोर मचा रहा है .. तब देश को पता तक नहीं था कि लड़की कौन है .. राजेन्द्र यादव का पहला बयान दामिनी के लिए प्रकट संवेदना नहीं थी बल्कि बलात्कारियों को फांसी नही दिया जा सकता इसकी मांग थी .. खुद २००४ में कांग्रेस की टिकट के लिए मार कर रहे अनंतमूर्ति अपने एलिट कमरे से मुंह में सिगार दबाये अभी देश को लोकतंत्र का अर्थ समझा रहे हैं ..
सागरिका घोष अमर्त्य सेन के कंठ में हाथ डालती है और शर्माते अमर्त्य सेल्फ फतवा जारी कर देते हैं .. तरुण तेजपाल पर उदय प्रकाश ने ‘थोमस अल्वा एडिसन थ्योरी’ दी कि एडिसन ने बल्ब ईजाद किया इसलिए एकाध लड़की छेड़ दी तो कोई बात नहीं ..
मंगलेश डबराल दो दिन बाद उदय प्रकाश की नाव पर सवार हो ‘लाल और विक्षिप्त लाल भाई भाई’ का नारा लगा तेजपाल की पैरवी कर रहे हैं .. दोनों में होड़ लग गया है कि कौन तेजपाल का ज्यादा प्रिय पात्र खुद को साबित करे ..
तेजपाल पर कार्रवाई की मांग कर रही हर मीडिया, हर राजनीतिक कार्यकर्ता को भ्रष्ट कहा जा रहा है .. जो बौद्धिक तरुण पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं उन्हें भाजपाई कहा जा रहा है ..
इस बुरे वक़्त में संतोष यह है कि देश का आम बौद्धिक इन चिन्हित बौद्धिकों की शक्ल सूरत नीयत बखूबी पहचान रहा है और इनसे घृणा भी कर रहा है .. मैं मानता हूँ कि यही सही समय होगा कि देश सत्य असत्य न्याय अन्याय का भेद भूल चुकी .. खुद के लाभ के लिए स्वार्थी हो चुकी देश की इस चिन्हित बौद्धिकता को गले से पकडे और अरब सागर में फेंक दे ..
(स्रोत- एफबी)