उर्मिलेश उर्मिल,वरिष्ठ पत्रकार –
कश्मीर पर मेरी किताब आज आ गई। नये संस्करण में एक नया अध्याय जोड़ा गया है और एक अन्य अध्याय में हाल के घटनाक्रमों की रोशनी में कुछ जरूरी बातें शामिल की गई हैं। पुस्तक में कश्मीर के भारतीय संघ में अधिमिलन(अक्तूबर 1947)से लेकर जून-जुलाई 2016 तक के घटनाक्रमों को ठोस तथ्यों के साथ रखा गया है। सरहदी सूबे के आधुनिक इतिहास को हिन्दी पाठकों के सामने लाने का यह एक विनम्र प्रयास है। पढ़ें और अपनी राय दें तो मुझे अच्छा लगेगा। आपके सुझावों से अगले संस्करणों में सुधार भी हो सकेगा। इसके पहले, इसी सितंबर महीने में मेरी नयी किताब ‘क्रिस्टेनिया मेरी जान’ (आधार प्रकाशन) भी प्रकाशित हुई। वह मेरी कुछ विदेश यात्राओं का वृत्तांत है।
अजीत अंजुम
उर्मिलेश जी को मैं तब से जानता हूँ ,जब मैं ट्रेनी था …पटना नवभारत टाइम्स के तेज़ तर्रार रिपोर्टर उर्मिलेश की ख़बरें पढ़कर सोचा करता था कि एक दिन मैं भी इसी तरह धुआँधार लिखूँगा और छपूँगा …लेकिन कुछ साल तक अख़बारों की नौकरी करने के बाद टीवी की नौकरी से ऐसा टँगा कि आजतक टँगा हूँ …उर्मिलेश पटना के बाद दिल्ली आए ..कई सालों तक बड़े अख़बारों में काम करते रहे और देश दुनिया की यात्रा करते हुए लगातार लिखते रहे ..टीवी में काम करते हुए लिखने से उनका नाता बना रहा ..दिल्ली में सत्ता प्रतिष्ठान के क़रीबी पत्रकारों की श्रृंखला से बाहर रहकर उर्मिलेश ने ख़ुद ही अपनी अलग छवि गढ़ी और तमाम मुद्दों पर भीड़ का हिस्सा बनने की बजाय अपनी असहमतियों का इज़हार करते रहे …उनसे आप कई बार असहमत हो सकते हैं , मैं भी होता हूँ …लोकतंत्र में सबको अपने – अपने विचार रखने का हक़ है …उन्होंने अपने विचार को सियासी सौदागरों के हवाले करके या किसी के लिए मुनादी और किसी की डुगडुगी बजाकर ‘मोटा माल’ नहीं कमाया है .. उनके विचार आपको पूर्वाग्रही लग सकते हैं और इस दौर में तो ज़्यादातर लगेंगे क्योंकि ज़्यादातर एक ही तरफ़ दौड़ रहे हैं …कश्मीर मुद्दे पर उर्मिलेश ऐसा रुख़ अख़्तियार करते हैं , जिससे कई बार आंशिक तौर पर ही सही ,असहमत मैं भी होता हूँ …बतौर रिपोर्टर कश्मीर पर उन्होंने पहले भी काफ़ी लिखा है ..उनके तजुर्बे और उनकी समझ का सार उनकी इस किताब में हेगा …
पढ़ने का आकांक्षी मैं भी हूँ .