इशारों में क्या बात करते हैं. तरुण तेजपाल को दोषी (तेजपाल ने खुद गुनाह कबूल करते हुए ‘प्रायश्चित’ करने का फैसला किया है) मानते हैं तो खुल के बोलिए. अगर नहीं मानते तो ये भी कहिए और बता के बात कीजिए कि क्यों ये सब भारतीय समाज में नॉर्मल है. यूरोप-अमेरिका का उदाहरण देने से काम नहीं चलेगा. और तेजपाल से संबंधित खबर का लिंक कॉपी-पेस्ट करके भी नहीं.
बात यहां भी सिम्पल है. अगर कोई अपने कार्य क्षेत्र में ‘महान’ है तो महानता अपनी जगह और उसका व्यक्तिगत जीवन अपनी जगह. घालमेल मत करिए. सेक्स को लेकर स्वच्छंद आचार-विचार रखकर आप भले ही मॉडर्न कहलाने की खुशफहमी पाल लें लेकिन इसे कैसे नकारिएगा कि इंसानी समाज ने इसे चलाने के लिए कुछ नियम-कायदे तय किए हैं. अगर आप ‘विद्रोही’ हैं तो ये आपका अधिकार है लेकिन किसी के साथ जबरदस्ती, इंसानी समाज में कभी मान्य नहीं हो सकता. आप जानवरों की दुनिया का कायदा इंसानों के बनाए संविधान में नहीं थोप सकते.
एक और बात, आपकी चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है. एक बार फिर बोलूंगा कि महानता और निजी बातों में फर्क करना जानिए. ये तो कुछ ऐसे ही हुआ कि सचिन तेंडुलकर बहुत महान-भगवान हैं लेकिन वह पानी बेचने की मशीन और बैटरी वाले इन्वर्टर का विज्ञापन नहीं करेंगे. क्यों भाई?? उनकी महानता का विज्ञापन से क्या लेना-देना. ठीक वैसे ही, जैसे किसी पत्रकार-साहित्यकार-कलाकार की महानता की आड़ में आप उसके ‘अनुचित व्यवहार-आचरण’ पर सवाल नहीं उठाएंगे. आरोप कोई भी लगा सकता है और कभी भी. हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या!!! इस देश में कानून नाम की भी कोई चीज है या नहीं.??!!!
(स्रोत-एफबी)