अर्णब के अखाड़े में आज आधा हिस्सा विवेक-केंद्रित था। कूटनीति के जानकार ही नहीं, पूर्व सेनाध्यक्ष तक पाकिस्तान पर हमले के ख़तरे समझा रहे थे। कहा गया कि ख़याल करें क्या पाकिस्तान पलट कर हमला नहीं करेगा? इससे भी बड़ा पहलू यह सामने आया कि पाकिस्तान की सुरक्षा पर हाथ देख क्या चीन चुप बैठा देखता रहेगा? वह पाकिस्तान के साथ हो जाएगा। एक पूर्व राजनयिक ने कहा – 1962 वाली चोट न हो जाय।
बहस के अगले हिस्से में जनरल बक्षी की धारा मुखर हो गई। मारूफ़ रज़ा – जिन्हें राजनयिक केसी सिंह पहले फटकार चुके थे – ने कहा टाइधारी राजनयिक कुछ नहीं कर सकते, सेना पर छोड़ दो सब कुछ। मगर अर्णब का समापन वक्तव्य आश्चर्यजनक रूप से संयत था – यह सही है कि राष्ट्र अधीर है, पर जो किया जाय जल्दबाज़ी में न किया जाय।
क्या वाक़ई उन्मादी तत्त्व जल्द विवेक की ओर झुकने लगे? और चैनलों का पता नहीं, पर अर्णब का दहाड़हीन रूख देखकर चचा ग़ालिब ही ख़याल आए – कभी नेकी भी उसके जी में आए है … जफ़ाएँ करके अपनी याद शरमा जाए है …
पंकज श्रीवास्तव
अर्णव को पता चल चुका है कि सरकार हमला करने नहीं जा रही है…वह इज़रायल की तरह घुस कर मारने की वक़ालत चीख चीख कर कर रहा था…लगता है कि पीएमओ से चेताया गया है …. जोकर साबित होने से बचने के लिए संयम की गोली निगल रहा है…