दिलीप मंडल,पूर्व प्रबंध संपादक,इंडिया टुडे


एक मित्र कह रहे हैं कि अजित अंजुम कौन हैं. गूगल पर दिलीप मंडल सर्च करने से अजित अंजुम का लिखा हुआ कुछ-कुछ नजर आता रहता है. वे कहते हैं, अजित अंजुम आपकी आलोचना में लिखते हैं, आप उनके बारे में कुछ भी क्यों नहीं लिखते?
हां, यह सही है कि मैंने अजित अंजुम के बारे में अभी तक “पहली लाइन” नहीं लिखी है. क्या लिखूं? और क्यों लिखूं? एक भी लाइन लिखनी हो, तो क्यों लिखी जाए? अगर किसी के होने का कोई सामाजिक-राजनैतिक या लोक-जीवन के लिए कोई भी मतलब या संदर्भ न हो तो उनके बारे में क्या लिखा जाए? वैसे अजित अंजुम पत्रकार हैं, मित्र हैं. सारे आलोचक मेरे मित्र हैं.
मैं ऐसे ही किसी के बारे में लिखकर अपना और आपका समय क्यों खराब करूं? आप ही बताइए. मैंने अपने किसी भी आलोचक के बारे में नहीं लिखा, तो अजित अंजुम में ऐसा क्या खास है, कि उनके बारे में मैं एक लाइन भी लिखूं.
मेरे बारे में तमाम निजी आलोचनाओं पर इसे ही मेरा उत्तर माना जाए. @fb