तरुण तेजपाल पर यौन उत्पीडन के आरोप लगने के बाद पत्रकारिता की दुनिया में भूचाल आ गया है. ऐसे लोग भी अलग-अलग माध्यमों से अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे हैं जिनका प्रत्यक्ष तौर पर मीडिया की दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है. यहाँ तक कि तहलका में काम करने वाले पत्रकार भी अपनी बात फेसबुक और सोशल मीडिया के माध्यम से रख रहे हैं.
लेकिन ऐसे अहम मौके पर हरेक विषय पर अपनी बात तत्परता से रखने वाले तहलका (हिंदी) के मीडिया कॉलमिस्ट और मीडिया शिक्षक ‘आनंद प्रधान’ मौन साधे हुए हैं. अबतक उन्होंने कविता कृष्णन का एक फेसबुक स्टेटस शेयर भर किया है.
पर ऐसा नहीं है कि वे फेसबुक पर नहीं. वे फेसबुक पर हैं लेकिन ताज और फतहपुर सीकरी की तस्वीरें लगाने में व्यस्त हैं.तरुण तेजपाल यौन उत्पीडन मसले पर एक शब्द भी अबतक नहीं लिखा.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है. न्यूज़24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम ने आनंद प्रधान के सामने यह सवाल उठाया है जो बिल्कुल वाजिब भी हैं. वे लिखते हैं :
आनंद जी , आप उसी तलहका में बाकी मीडिया की बखिया उधेड़ते रहे हैं तो तेजपाल ने जो किया उस पर लिखने से बच क्यों रहे हैं …आपकी निष्पक्षता खतरे में है आनंद जी…तेजपाल ने इतनी शर्मनाक हरकत की है और आप चुप हैं ……ये चुप्पी क्यों है आनंद जी …आप जैसे लोग चुप रहेंगे तो सवाल तो उठेंगे ही. (अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, न्यूज़24)
सर , क्या आपने हम जैसे लोगों के लिए कुछ लिखने का विकल्प अपनी वाल पर खत्म कर दिया है ….आप तहलका मामले में चुप क्यों हैं ….आप तो खुलकर बोलने – लिखने वालों में है लेकिन तेजपाल पर चुप्पी …समझ में नहीं आ रही है हमें आनंद जी …आप तो सेलेक्टिव मत होइए सरजी
आनंद जी , आप अपना स्टैंड साफ करिए …कहिए कि तलहका और उसके संपादक का मामला है तो आप नहीं बोलेंगे …कैसे चुप रहा जा रहा है आनंद जी आप
Anand Pradhan अजीत जी और गौरव जी, मैं चुप नहीं हूँ..इस मुद्दे पर मैंने २३ नवम्बर को महिला आंदोलन की महत्वपूर्ण आवाज़ कविता कृष्णन के विचारों को यह कहते हुए शेयर किया था कि मैं इससे सहमत हूँ..वह मेरे वाल पर अब भी है…लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने ‘तहलका’ के अगले अंक के लिए तरुण तेजपाल के मुद्दे पर ही लिखा है…उम्मीद करता हूँ कि ‘तहलका’ में वह छपेगा…इन्तजार कर रहा हूँ…छपने से पहले उसे कहीं और पब्लिश कैसे करूँ? साथ ही, ‘कथादेश’ के लिए एक बड़ा लेख लिख रहा हूँ…मुझे उम्मीद है कि आप मित्रों को उसे पढ़ने के बाद शिकायत नहीं रहेगी…
वैसे संक्षेप में कहूँ तो मानता हूँ कि तरुण तेजपाल पर यौन हिंसा विरोधी नए कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई होनी चाहिए…अगर ‘तहलका’ को जीवित रहना है तो ‘तहलका’ और उसके शुभचिंतकों को उन्हें किसी भी तरह से बचाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए..इस मामले में यह एक टेस्ट केस है…लेकिन मैं ‘भीड़ के न्याय’ (लिंच मॉब) की मानसिकता के खिलाफ भी हूँ…मीडिया को इसकी रिपोर्टिंग में तथ्यों के साथ संतुलन, वस्तुनिष्ठता और संवेदनशीलता का पूरा ध्यान रखना चाहिए…