जब सरकारें लगातार हताश और निराश करती रहें तो विपक्ष चुनना भी एक विकल्प है. सरकारें तभी स्वेच्छाचारी होती हैं जब विपक्ष के पास कोई अंकुश नहीं होता. वो सरकारों के रहमो करम पर ही पलता है. जनता अगर ख़राब सरकार चुन भी ले तो मज़बूत विपक्ष इसकी भरपाई कर सकता है. लेकिन उत्तराखंड इतना भी खुशनसीब नहीं निकला. इसकी विधानसभा में विपक्ष ने आज तक किया क्या इसका कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता. पिछली विधानसभा में विपक्ष सरकार के ख़िलाफ़ बाहर निकला तो वो भी चुनाव से छह महीने पहले और आते ही घोड़े की टांग तोड़ दी. वो टांग दरअसल उत्तराखंड की थी. घोड़ा तो चल बसा, उत्तराखंड की वो गति ना हो इसलिए इस बार विपक्ष ही बेहतर चुन लो. कम से कम वो वाजिब सवाल तो उठाए. सरकार तो चुन नहीं सकते.
(पत्रकार सुशील बहुगुणा के फेसबुक वॉल से साभार)