धर्म के नाम पर सिर्फ एक किस्म का आतंक फैला रही है सरकार

धर्म परिवर्तन पर क्या हर बार न्यूज चैनल इतने ही गंभीर होते हैं?
धर्म परिवर्तन पर क्या हर बार न्यूज चैनल इतने ही गंभीर होते हैं?

अमिताभ श्रीवास्तव

धर्म परिवर्तन पर क्या हर बार न्यूज चैनल इतने ही गंभीर होते हैं?
धर्म परिवर्तन पर क्या हर बार न्यूज चैनल इतने ही गंभीर होते हैं?
हिंदुत्व के हरकारों,पैरोकारों और ध्वजाधारकों ने चारों तरफ जो हंगामा मचाया हुआ है उसे देख कर इस सरकार और उसके बृहत् परिवार के असली अजेंडे की कलई खुलने लगी है . बजाय इसके कि वो बच्चो की अच्छी पढाई, बेहतर स्वास्थ्य, महिलाओं की सुरक्षा और आत्मसम्मान, नौजवानो की बेरोज़गारी जैसे असली और हमारी आपकी ज़िन्दगी को दुनियादारी के हिसाब से बेहतर बनाने वाले मुद्दों के हल के लिए बड़ी उम्मीदों से अपनी चुनी हुई केंद्र सरकार और अपने अपने राज्यों की सरकारों पर दबाव बनायें बढ़ाएं, उनका सारा ध्यान इस पर है कि बाबर से लेकर बहादुरशाह ज़फर तक के शासन में जबरन (ऐसा वो इतिहास का उल्लेख करते हुए कहते है ) मुसलमान बना दिए गए लोगों की मौजूदा पीढ़ियों को वापस हिन्दू कैसे और कितनी जल्दी बना दिया जाय. इसीलिए वो गर्व से सीना ठोकते हुए इसे धर्मान्तरण नहीं बल्कि घर वापसी कह रहे हैं .

आगरा और अलीगढ में माहौल बिगाड़ने का खेल जानबूझ कर खेल जा रहा है और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर ठेली जा रही है. अरे भाई आप अपने हिन्दू धर्म के गरीब और पिछड़े वर्गों कि बेहतरी को मुद्दा क्यों नहीं बना रहे. क्या इसलिए कि आप दरअसल धर्म के नाम पर सिर्फ एक किस्म का आतंक फैलाना चाहते हैं. आप चुनावों में बात सबकी बेहतरी और सबको साथ लेकर चलने की करते हो लेकिन आपकी राजनीति दरअसल नफरत पर टिकी हुई है और आप उसी भावना को भड़काना चाहते हो.

स्कूलों में मरियम के साथ सरस्वती की प्रतिमा लगाने पर दादागिरी वाले अंदाज़ में ज़ोर दिया जा रहा है.एक तरफ ये हाल है और दूसरी तरफ आलम ये है कि नोबेल पुरस्कार विजेता के हमनाम एक भाजपाई मंत्री को उनके राज्य के मंत्री बधाई दे रहे हैं . हमें तो हंसी आती है लेकिन इन्हे शर्म भी नहीं आती . ये लोग बच्चों के लिए सिलेबस बनाएंगे तो क्या पढ़वाएंगे ये सोच कर डर लगने लगता है. ये कैसे रहनुमाओं से घिर गए हैं हम. @FB

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