संजय तिवारी
सावजी काका सत्तर के दशक में सूरत आये थे. खाली हाथ. काम की तलाश में. उधार लेकर हीरा कारोबार शुरू किया और आज ४५ साल के कारोबारी संघर्ष के बाद ६००० करोड़ के श्रीकृष्णा एक्सपोर्ट्स के मालिक हैं.
कारोबार का यह कोई इतना बड़ा कारु का खजाना नहीं है कि उनका विशेष तौर पर जिक्र किया जाए लेकिन कल से वे इसलिए चर्चा में हैं कि उन्होंने अपने यहां काम करनेवाले १२०० कर्मचारियों को ५० करोड़ खर्च करके कार, घर और ज्वैलरी का दीपावली तोहफा दिया है.
कारोबार के ऐवज में बोनस की रकम भी इतनी बड़ी नहीं है कि सावजी काका को सिरमाथे पर बिठा लिया जाए. लेकिन सावजी काका की तारीफ होनी चाहिए. जमकर होनी चाहिए. क्योंकि पूंजीवादी शोषण के ऐसे दौर में जब कर्मचारियों का शोषण लाभांश बढ़ाने का सबसे बड़ा हथियार हो गया हो तब सावजी काका या नारायणमूर्ति जैसे लोग समझाते हैं दौलत अपनों के बीच बांटने से भी बढ़ती है.
वे अपने कारीगरों को औसत एक लाख से ऊपर महीने का मेहनताना देते हैं. वे मानते हैं कि हमारा पूरा कारोबार उन्हीं कारीगरों की बदौलत चलता है जिन्हें वे बोनस बांटकर नाम कमा रहे हैं. सूरत वाले सावजी काका की यही समझ शायद उन्हें यहां तक लाई है. कर्मचारियों का पेट काटकर, हक छीनकर अमीर होनेवाले कारोबारियों के लिए सावजी काका इस दीवाली पर सबसे बढ़िया तोहफा है.
(स्रोत-एफबी)