मोतिहारी : पूर्वी चंपारण में वर्ष 06-08 में हुए शिक्षक नियोजन में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े की खबर है. इसका खुलासा आरटीआई से मिली जानकारी से हुआ है. जिसके तहत हिन्दुस्तान दैनिक में खबर प्रकाशित होते ही डीपीओ, स्थापना भूषण कुमार के द्वारा संदिग्ध 26 शिक्षकों के वेतन पर रोक लगा दी गई. इनके साथ ही शिक्षा विभाग के निदेशक, पटना के निर्देश पर जिले के सभी 27 प्रखंडों के नियोजित शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच की कवायद शुरु हो गई है. इस विभागीय पहल से जिले के वैसे हजारों लोगों में न्याय की उम्मीद जगी है. जो कभी शिक्षक अभ्यर्थियों की कतार में शामिल थे. फिर भी, मेधा होने के बावजूद जाली प्रमाण पत्र वालों से पिछड़ कर रह गए. लेकिन यह जांच निष्पक्ष तरीके से होगी भी या नहीं इसको लेकर संदेह बना हुआ है. माफिया तंत्र के हावी होने के कारण शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबा हुआ है. पहले भी दो बार प्रमाण पत्रों को जांच के लिए मंगाया गया था. पर जिले में ही मामला सलट लिया गया.
सूत्रों की मानें तो शिक्षकों की बहाली में विभागीय कर्मियों की मिलीभगत से एक रैकेट बना रेवड़ियों की तरह फर्जी प्रमाण पत्र बांटे गए थे. चोरी से लाए गए एक ही सादे प्रमाण पत्र व अंक पत्र की कापी करा सैकड़ों अभ्यर्थियों को नियोजित किया गया. इनमें अधिकांश के प्रमाण पत्र यूपी के सारनाथ, वाराणसी, देवरिया व गोरखपुर आदि कालेजों और इलाहाबाद बोर्ड से जारी बताए गए हैं. किसी-किसी के तो इंटर व स्नातक तक के प्रमाण पत्र जाली हैं. जिसको ‘ककहरा’ का ‘क’ लिखने नहीं आता वह भी मास्टर बन बैठा है. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार जैसे पिछड़े प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की क्या स्थिति है. लेकिन विडंबना ही है कि इसकी जांच सही तरीके से नहीं कराई जाती. बताया जाता है कि इनकी बहाली कराने वाले रैकेट के माध्यम से संबंधित कालेजों व शिक्षा विभाग को मैनेज कर मामले को दबा दिया जाता है. इसके लिए फर्जी शिक्षकों से मोटी रकम की उगाही की जाती है. पहले भी जिले के 83 फर्जी शिक्षकों को निलंबित किया गया था. लेकिन बावजूद इसके वे काम करते हुए वेतन उठा रहे हैं. ऐसे में यदि जिले के तमाम प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया संगठित हो मिशन की तरह इसके बारे में रिपोर्टिंग करे तो सकारात्मक परिणाम मिल सकता है.
(एक पत्रकार की रिपोर्ट)