ओपिनियन और एग्जिट पोल गलत निकले तो कम से कम खेद ही जता देते
जो लोग विधानसभा चुनाव के परिणामों से आगामी लोकसभा चुनाव के परिणामों का आंकलन कर रहे हैं, मेरी समझ से इसमें गलती हो रही है. आजाद हिन्दुस्तान का वोटर इतना परिपक्व है कि वह केन्द्र और राज्य के चुनाव में वोटिंग अलग-अलग तरीके से कर सकता है. सो 3-0 से जो बढ़त भाजपा को इस बार राज्यस्तरीय चुनाव में मिली है (दिल्ली के नतीजे शामिल नहीं कर रहा हूं), लोकसभा चुनाव में गणित इसके एकदम उलट होगा. आप ये मत भूलिए कि बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का कैंडिडेट घोषित कर दिया है, सो कांग्रेस की सारी बुराइयों के बावजूद लोकसभा चुनाव में वोटों का जबरदस्त ध्रुवीकरण होगा. मुस्लिम वोट या तो क्षेत्रीय क्षत्रपों के पास जाएंगे या फिर कांग्रेस के पाले में. और ये वोट नहीं बंटेगा. मोदी का खौफ इतना है कि सब मिलकर एकमुश्त वोट डालेंगे. उस उम्मीदवार के फेवर में, जो बीजेपी को हरा सकने का माद्दा रखेगा. साथ ही मुस्लिम वोट उसी क्षेत्रीय क्षत्रप को मिलेंगे, जो चुनाव के पहले या बाद में बीजेपी से हाथ ना मिलाए. और सारा चुनावी गणित यहीं से गड़बड़ा जाएगा.
जो कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की लहर है, वह भूल कर रहे हैं. दरअसल ये मोदी की लहर नहीं, कांग्रेस की नाकामयाबी का गुस्सा है, जो कभी नई-नवेली पार्टी -आप- के पक्ष में चला जाता है तो कभी बीजेपी के खाते में. अगर मोदी की लहर होती तो इतना धुआंधार प्रचार करने के बाद बीजेपी दिल्ली में अच्छे-खासे बहुमत के साथ सरकार बना लेती. इस बात को नजरअंदाज मत कीजिए कि बीजेपी दिल्ली में उसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गई, जहां मोदी ने दिल्ली की सबसे बड़ी बहुचर्चित रैली की थी. फिर कहां गया मोदी फैक्टर??!! मीडिया वाले हवा बनाते हैं, तो बनाने दीजिए.
क्या आप भूल गए कि किस कदर बड़े टीवी चैनलों के ओपिनियन और एग्जिट पोल्स में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी को महज 6 सीट दी गई थी. चुनाव नतीजे देख लीजिए. चैनलों और सर्वे एजेंसियों के ये भविष्यवाणी कहीं नहीं टिकतीं. और ये लोग इतने बेशर्म हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद दर्शकों से एक बार भी माफी नहीं मांगते. एक बार भी अपने ओपिनियन और एग्जिट पोल का जिक्र करके ये नहीं कहते कि हां, हमसे गलती हुई. हम हालात का आंकलन करने में नाकामयाब रहे. हमारा सर्वे-पोल फ्लॉप रहा.
और ये पहली दफा नहीं है. बार-बार लगातार ये होता रहता है. टीवी-अखबार-पत्रिका वाले चुनाव पूर्व अपना फर्जी सर्वे कराते हैं, उसके रिजल्ट बड़ी आन-बान-शान से छापते हैं, टीवी पर दिखाते हैं, टाई-शाई लगाकर डिबेट कराते हैं, हौवा बनाते हैं और ऐसा करके कहीं ना कहीं जनता की राय को प्रभावित करने का काम करते हैं. लेकिन जब इलेक्शन के रिजल्ट आते हैं और उनका पूर्वानुमान कोरा बकवास साबित होता है, तो उसका वह जिक्र भी नहीं करते. हां कभी इत्तफाक से तुक्का लग जाता है तो प्रोमो बनाकर खूब बताते हैं कि देखो, हमने कहा था ना कि इसको इतनी सीटें मिलेंगी. इलेक्शन मतलब हमारा चैनल वगैरह-वगैरह.
लेकिन अगर तुक्का निशाने पर नहीं लगा (जैसा 95 फीसदी मामलों में होता है) तो टीवी-अखबार से ओपिनियन-एग्जिट पोल ऐसे गायब हो जाता है, जैसे गधे के सिर से सींग. फिर तो एंकर टाई पहने बस मूड़ी गड़ाता रहता है, पैनल के एक्सपर्ट से खोखली बहस करता रहता है कि ये हो गया, वो हो गया. ऐसा हुआ सो इसलिए हुआ और वैसा हुआ सो उसलिए हुआ. अरे भाई, पब्लिक को मूरख समझे हो क्या. जो एनालिसिस आप वहां बैठ के करते हैं, उससे ज्यादा अच्छा आपके मुहल्ले का ठीये वाला कर देगा और एक लाइन में बताएगा कि फलां हारा तो इसलिए हारा.
आप टेक्निकल बनाकर और बड़े-बड़े ग्राफिक्स दिखाकर चुनाव नतीजों में भव्यता लाते हैं और फिर बताते हैं कि ये हो गया. अब रिजल्ट आ गए तो क्या बताना. हम आदमी अपनी समझ से ये अंदाजा लगा लेता है कि ऐसा हुआ तो क्यों हुआ. आप इतने ही बड़े ज्ञानी-ध्यानी-मानी थे तो फिर आपका ओपिनियन और एग्जिट पोल टांय-टांय फिस्स क्यों हो गया???!! और जितनी शान से आपनी इसकी घोषणा की थी, माहौल बनाया था, उतनी ही विनम्रता से आप पब्लिक से माफी क्यों नहीं मांगते. आखिर एक अखबार भी गलती छापने पर माफी तो मांगता ही है. लेकिन ओपिनिय और एग्जिट पोल में गलत भविष्यवाणी पर आप लोग माफी क्यों नहीं मांगते???!!!
उदाहरण के लिए अभी दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बड़ा चैनल आम आदमी पार्टी को 6 सीटें दे रहा था और बीजेपी को पूर्ण बहुमत. 40 से ज्यादा सीटें. दूसरा चैनल -आप- को 18 सीट दे रहा था और एक तीसरा चैनल -आप- को ही बहुमत दिला रहा था. सबके पूर्वानुमान मुंह के बल गिरे और धूल चाट रहे हैं. लेकिन किसी ने भी विनम्रता और दर्शकों के प्रति अपनी विश्वसनीयता का ख्याल करते हुए इन गलत पूर्वानुमानों पर खेद तक नहीं जताया.
उल्टा जो चैनल केजरीवाल की पार्टी को सबसे कम सीटें दे रहा था, मात्र 06, वही कल बहुत बेशर्मी से स्पेशल शो चला रहा था- केजरीवाल की क्रांति. और उसका वीर-धीर प्रोड्यूसर (जो मौके की नजाकत देख स्क्रिप्ट लिखकर उसे बनावटी सनसनी वाली आवाज का वीओ देने के लिए कुख्यात है) वीओ में मॉड्यूलेशन लाकर बता रहा था कि कैसे केजरीवाल ने इतिहास रच दिया. ये अंडर करंट था, और ये तो होना ही था. ये पटकथा तो लिखी जा चुकी थी. केजरीवाल को तो इतिहास रचना ही था. उस बेशर्म को ये नहीं पता था क्या कि आज जो आप केजरीवाल की जय-जय बता रहे हो, कल आप ही का चैनल उसे दहाई के आंकड़े वाली सीट भी नहीं दे रहा था. और कल तक तो आपका चैनल बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिला रहा था और आज आप कह रहे हैं कि ये तो होना ही था. -आप- की जीत तय थी वगैरह-वगैरह. अरे इतनी जल्दी तो गिरगिट भी रंग नहीं बदलता. आप तो बड़े ही वो निकले. धत्त. अब समझा. ये सब तो टीवी का तमाशा था. जो आप पहले दिखा रहे थे, वह भी और जो आप आज दिखा रहे हैं वह भी. और प्रोड्यूसर पत्रकार कहां हैं. वह तो एक किरानी है, क्लर्क है. शो बनाने वाला है. जब स्क्रिप्ट लिखता है तो पत्रकारीय समझ भूलकर ये देखता है कि शब्दों की तुकबंदी कैसे करें और वीओ कैसे नाटकीय बनाएं. तो आप पत्रकारिता नहीं कर रहे-दिखा रहे. शो बना रहे हैं, पैकेज चला रहे हैं, किसी फीचर फिल्म की माफिक. ऐसे चैनलों के सम्पादकों से अपील है कि वे कृपया अपने यहां कुछ पत्रकार भर्ती कर लें. चुनाव का मौसम है. ये पैकेज वाले सनी लियोन और राखी सावंत तक तो चल सकते हैं, चुनाव की खबरें नहीं बना सकते. क्यों भद्द पिटवा रहे हैं…
एक बात और. कभी-कभी मुझे लगता है कि ओपिनियन और एग्जिट पोल्स में किसी खास पार्टी को -जानबूझकर- बहुमत दिखाने का काम कहीं किसी एजेंडे के तहत तो नहीं हो रहा??!! अटलजी के टाइम में भी -इंडिया शाइनिंग- एक खास अखबार की लहर पर चढ़ कर चलाया गया था कि देश दमक रहा है. और नतीजा ठीक उलट हुआ. सोनिया के रोड शो ने एनडीए को सत्ता से बाहर कर दिया. तब के ओपिनियन पोल्स ने भी भारी बहुमत से एनडीए की जीत का दावा किया था. तो क्या यह माना जाए कि ओपिनियन पोल्स और
एग्जिट पोल्स भी Paid होते हैं. प्रायोजित होते हैं???!! इनकी निष्पक्षता संदेह के घेरे में होती है??!! किसी चैनल पर कोई बता रहा था कि फलां एजेंसी ने जो सर्वे किया है, वह फलां पार्टी के फलां नेता का है. जब हाल ये है तो बताइए कि उनका सर्वे कितना निष्पक्ष होगा???!! अब समय आ गया है कि ऐसे Opinion & Exit polls पर चुनाव आयोग पाबंदी लगाए. मेरा स्पष्ट मानना है कि चुनाव पूर्व कहीं ना कहीं ये जनता-जनार्दन की राय को प्रभावित करते हैं. और लोकतंत्र में इसकी इजाजत नहीं होनी चाहिए कि मीडिया संस्थान अपनी ताकत का उपयोग/दुरुपयोग सरकार बनाने-बनवाने में करें. दूसरी पार्टियों से तो उम्मीद नहीं है कि वो चुनाव आयोग में जाकर ऐसे पोल्स पर पाबंदी की बात कहेंगे. आम आदमी पार्टी ये शुरुआत करे तो शुभ संकेत होगा. वैसे भी चुनाव पूर्व -मीडिया सरकार- के फर्जी स्टिंग ने -आप- को जो नुकसान पहुंचाया है, उन्हें इस दुर्घटना को भूलना नहीं चाहिए. शाजिया इल्मी बहुत कम अंतर से चुनाव हारी हैं और बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है. जय हो.
congress ki har = b.j.p ki jeet sidhi baat