इकबाल परवेज
क्लब 60, छोटे बजट की बड़ी फिल्म है जिसमें कहानी है, इमोशन है, ड्रामा है और साथ ही इंटरटेनमेंट भी.
काश इस फिल्म की मार्केटिंग का बजट भी उतना बड़ा होता जितनी बड़ी इसकी सोंच है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फिल्म पहुँच पाती.
दरअसल क्लब 60 एक ऐसी फिल्म है जो मनोरंजन के साथ-साथ कुछ सीख भी देती है.
मुंबई: फिल्म ‘क्लब 60’ की कहानी 60 और उससे ज़्यादा उम्र कुछ किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है… उन्हीं किरदारों में से एक हैं डॉक्टर (फारुख शेख), और एक दिन उनकी पत्नी (सारिका) और उनके खुशहाल जीवन में अचानक गम का अंधेरा छा जाता है, जब अमरिका में उनके जवान बेटे की मौत हो जाती है… इस ख़बर के बाद डॉक्टर आत्महत्या की कोशिश करते हैं और सारिका उन्हें बचाने में लगी रहती हैं… इसी दौरान उनकी मुलाकात होती है मणु भाई (रघुवीर यादव) से, जो डॉक्टर को ‘क्लब 60′ का सदस्य बनाते हैं, और यहां उनकी मुलाकात होती है ’60’ के गैंग से…
फिल्म में बताया गया है कि हर इंसान की ज़िन्दगी में कोई न कोई तकलीफ ज़रूर होती है… किसी ने अपने बच्चे की मौत देखी है, तो किसी का बेटा घरजंवाई बनकर ससुराल में ही बस गया है… किसी का बेटा विदेश जाकर मां-बाप की ख़बर तक नहीं लेता… यानि, दुःख हर इंसान की ज़िन्दगी से जुड़े हैं… ऐसे हालात में किस तरह खुश रहना चाहिए, कैसे खुश रहा जा सकता है, यही सब दिखाया गया है ‘क्लब 60’ में…
फिल्म में सुपरस्टार कोई नहीं है, मगर कलाकार बड़े हैं, जिन्होंने जबरदस्त अभिनय किया है… फिल्म बड़े बजट की भी नहीं है, मगर इसकी कहानी और सोच काफी बड़ी है… फिल्म में कोई आइटम सॉन्ग नहीं है, मगर जो भी एक-दो गाने हैं, कहानी में बेहद अच्छी तरह पिरोए गए हैं… फिल्म में भले ही कोई कॉमेडियन भी नहीं है, मगर गुजराती मणु भाई के किरदार ने मनोरंजन किया है… गमज़दा पति-पत्नी के किरदारों में फारुख शेख और सारिका ने जान डाल दी है… कुल मिलाकर डायरेक्टर संजय त्रिपाठी ने न सिर्फ बुजुर्गों के दुःख-दर्द को बहुत सुंदरता से दर्शाया है, बल्कि उनके ज़िन्दगी से मज़े लेने के तरीकों, और उनके हंसी-मज़ाक के पलों को भी खूबसूरती से फिल्माया है… यह देखना भी अच्छा अनुभव रहा कि किस तरह ये बुजुर्ग एक-दूसरे के साथ रहते हैं, सुख में, और दुःख में भी… किस तरह लड़कियों से फ्लर्ट किया करते हैं… काश, फिल्म की मार्केटिंग का बजट बड़ा होता और फिल्म ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच पाती…
वैसे, कुछ सीन लंबे खिंचे हैं… खासतौर से क्लाइमेक्स सीन हज़म नहीं होता… रिश्तों पर आधारित फिल्म ने अच्छा संदेश देने की कोशिश की है… ‘क्लब 60’ यह संदेश भी देती है कि अपना हो या दूसरों का, दुःख बांटने से कम होता है और सुख बांटने से बढ़ता है… इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3.5 स्टार…
(स्रोत – एनडीटीवी )