मनीष ठाकुर,वरिष्ठ पत्रकार-
वाक्या दिसंबर 2011 की है. ये कहानी मैने अपने लगभग सभी निजी दोस्तों को बताया हुआ है आज सोशल मीडिया पर शेयर कर रहा हूं.यह जानने के लिए कौन डर रहा है और कौन डरा रहा है योगी के मुख्यमंत्री बनेने से.मैं दिल्ली से गाजियाबाद सिफ्ट हो गया था.’भारत “गैस सिलेंडर ट्रांसफर कराने साहिबाबाद गया था. वहां एक एफिडेविट बनाना था.पत्नि साथ में थी. जिस दुकान पर मैं यह काम करा रहा था वहां आजम खां की बड़ी तश्वीर लगी थीदुसरी तश्वीर थी जिसमें आजम खां के साथ में दुकानदार भी उस फोटो में था. मैने जिज्ञासा बस पूछा आजम खां कि तश्वीर लगा रखी है आपने?.बिना सेकेंड लगाए दुकानदार ने तपाक से कहा क्यों डर गए क्या? मैने इस जबाव की अपेक्षा नही की थी. अंदर के पत्रकार ने तुरंत जबाव दे दिया..डरुं तो मैं इनके बाप भी नहीं लेकिन क्या आपने फोटो डराने के लिए लगा रखा है? मेरे इस जवाब से मेरी पत्नि थोड़ा घबरा गई. उसने जोड से चुकुटी काटा.यह एहसास दिलाने के लिए कि आप परिवार के साथ है.
मेरे जवाब से दूकानदार भी थोड़ा सकपकाया क्योंकि उसे भी नहीं पता था कि जवाब ऐसा होगा. उसने कहा नहीं साहब बस लगा लेते हैं,फोटो ताकि पुलिस वाले तंग न करें.हम क्या डराएंगे? यह ठेका तो यादवों का है। भरोसा रखिए फिर पत्रकार मानस ने वहां कई सवाल और जवाब ढूंढे .लंबी बात चीत में उसने कहा कि यदि आप यहां आजम खां या अखिलेश का फोटो न लगांए तो धंधा करना मुश्किल है. मैं नहीं कहता कि वो दुकानदार बिल्कुल सही कह रहा था और सभी दुकानदार ऐसा करते हैं.लेकिन ये एक बड़ा सच है यूपी का.
मुझ से दैनिक मुलाकात के वो तमाम साथी इस कहानी से अवगत है. मैं जानता हूं कि आजम खां के उस समर्थक को मेरा दिया जवाब मुझे भारी पर सकता था. लेकिन मैं बच गया. मैं ये यादे सिर्फ इसलिए ताजा करना चाह रहा था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यूपी बिहार जैसे राज्यो में ये हालात क्यो पैदा होते हैं. क्या वही लोग योगी के आने से डर रहे हैं जो डराने का धंधा करते थे. वो तमाम ठेकेदार पत्रकार जिनकी हिस्सेदारी डर के इस धंधे में था क्या वे डर रहे हैं. यदि योगी वही हालात बनाते है जो अखिलेश और माया के राज में था तो वक्त फिर बदलेगा.लेकिन हालात नहीं. उम्मीद करें कि देश में पहली बार सन्यासी का राज संन्यासी जैसा होगा.