संतोष सिंह
यासीन भटकल के गिरफ्तारी को लेकर मीडिया की जो रिपोर्टिंग रही है उसको लेकर एक बार फिर बहस शुरु हो गयी है आखिर मीडिया किसके साथ है? क्या दिखाना चाहती है? किसको दिखाना चाहती है? भटकल थोड़ी देर में पहुंचेगा मोतिहारी, थोड़ी देर में कोर्ट में होगी पेशी, मोतिहारी से पटना के लिए रवाना, पटना से दिल्ली बीएसएफ के विशेष विमान से रवाना। ये खबर किसको दे रहे हैं? इस खबर से हमारे दर्शको को क्या मतलब है? वही इस खबर का बेजा इस्तमाल आंतकी संगठन कर सकते हैं और करते रहे हैं। मुबंई हमले में तो ये बाते सामने भी आ गयी कि किस तरीके से देश के बाहर बैंठे आंतकी सरगना लाइव कवरेज देख कर ताज होटल में फंसे आंतकी को कारवाई का निर्देश दे रहे थे। वो तो आंतकियो का फोन ट्रैक हो गया और उसके बाद सेना ने लाइव बंद करवा दिया, नहीं तो आतंकियों को कब्जे में लाने में कई दिन और लग जाते।
अभी – अभी मेरी खुफिया विभाग के आलाधिकारी से बात हो रही थी. पूरा तंत्र घबराया हुआ है. मीडिया के सामने अंगूली उठा कर भटकल कुछ कह रहा था. हो सकता है इशारे – इशारे में अपने लोगो को कुछ संदेश दे रहा हो भटकल। जब से मीडिया में इस तरह का फूटेज चला है हमारी पूरी खुफिया ऐंजसी सक्रिय हो गयी उसके इशारे का मतलब निकाला जा रहा है. वही इसके सम्भावित हमले पर गौर किये जाने लगा है। ये क्यों आज हमारी पूरी खुफिया ऐंजसी का ध्यान भटकल के नेटवर्क को तोड़ने में होता. अब ध्यान उसके सम्भावित हमले पर केंद्रित हो गया है। हमे सोचना चाहिए रात में ही कर्नाटक के आईजी अप्रेशन का बाईट चल रहा था जिसमें वो कह रहे थे कि 2010 में ही भटकल पकड़ा जाता एक अप्रेशन के दौरान उसका एक साथी पकड़ा गया और जब तक पुलिस भटकल के पास पहुंचती मीडिया में इसके साथी के गिरफ्तारी की खबरे आने लगी. पुलिस जब उसके साथी द्वारा बताये गये ठिकाने पर पहुंची तो शीघ्र भागने से सारे सबूत वहां बिखरे हुए थे।
आत्म विवेचना या आत्म अनुसंशासन से इस तरह की खबरो पर रोक नही लगायी जा सकती है। इतने चैनल है और उसपर सोशल साईट. बहुत मुश्किल है रोकना. सरकार को इस तरह की खबरे पर कुछ कानूनी गाईड लाईन बनाने चाहिए. ये मैं एक पत्रकार के रुप में अनुभव कर रहा हूं। क्यों कि फिल्ड में काम करने वाले चाह कर भी रोक नही सकते. गला कट प्रतियोगिता है कोई चला दिया तो फिर जबाव देते देते आप परेशान हो जायेगे। उस वक्त कोई ऐथिक्स की बात सुनने को तैयार नही होता। देश के हलात बदल रहे है आंतकवाद है ,नक्सलवाद है, फिर संगठित अपराध से जुड़े गिरोह है। पुलिस भी है जो अपने तरीके से मीडिया को यूज करते हैं. इन तमाम हलात को देखते हुए जल्द ही कुछ फैसले लेने की जरुरत है।
(संतोष सिंह के एफबी से साभार)