प्रेस विज्ञप्ति
14 सितम्बर हिंदी दिवस पर कई कार्यक्रमों की बहार थी। लेकिन, इन सबके बीच एक अलग तरह के कार्यक्रम का गवाह बना हिंदी भवन में आयोजित आधी आबादी पत्रिका की संगोष्ठी। परिचर्चा का विषय महिलाएं करंट अफेयर्स क्यों नहीं पढ़ती? अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। इस विषय के चयन पर रौशनी डालते हुए पत्रिका की संपादक मीनू गुप्ता ने कहा कि पिछले पंद्रह महीनों में कई लोग उन्हें टोक चुके हैं कि आप रसोई, साज-श्रृंगार आदि क्यों नहीं छापते। और बाज़ार में भी महिलाओं के सम्बंधित जितनी भी पत्रिकाएं हैं उन सबमें अधिकांशतः यही सब छपता है। सेमिनार का उद्देश्य ये है कि हम समझने की कोशिश करें की महिलाएं किस तरह की कंटेंट पढ़ती हैं और करंट अफेयर्स क्यों नहीं पढ़ती।
वर्तिका नंदा ने पहली वक्ता के रूप में ऐसा समां बाँधा कि कि कार्यक्रम के आखिर तक लोग अपनी कुर्सियों से हिले तक नहीं। उन्होंने इस विषय पर बात करते हुए कहा कि जितने भी न्यूज़ चैनल हैं अगर आप देखें तो ज़्यादातर महिला एंकर ही खबर बताती हैं तो ये कहना कि महिलाएं करंट अफेयर्स नहीं पढ़ती सही नहीं। बहुत बात होती है कि महिलाएं सिर्फ रसोई या साज-श्रृंगार से जुडी बातें ही पढ़ती हैं। तो इसके पीछे भी वजह है। वो डरतीं हैं कि अगर उसके चेहरे पर झुर्रियां आ गयीं, झाइयां आ गयीं तो कहीं उसका पति कोई दूसरी औरत न कर ले। इसलिए वो ये भी पढ़ती हैं कि कैसे वे दुबली बनी रहे, कैसे ये सुन्दर बनी रहें। इसमें गलत क्या है? किसी दिन खाना अच्छा नहीं बनता तो ससुराल वालों से लेकर पति तक ताने मारते हैं वो क्यों न पढ़े कि अलग-अलग व्यंजन कैसे बनाया जाये। दूसरी बात, दुनिया की हर तीसरी औरत किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार रही है। घरेलु हिंसा में जितनी औरतें आज तक मारी गयी हैं उतनी किसी युद्ध में भी नहीं मारी गयीं। जहाँ घरों में इस तरह का माहौल हो वहां महिलाएं कैसे पढ़ लेंगी करंट अफेयर्स? उन्होंने कहा कि महिलाएं सब पढ़ती हैं लेकिन बता नहीं पाती क्योंकि उनकी सुनता कोई नहीं। वे पढ़ती हैं कि कैसे एक अबला के साथ अन्याय होता है, वे पढ़ती हैं कि वही अबला जब पुलिस के पास जाती हैं तो उसके साथ कैसा व्यवहार होता है। वे सब पढ़ती हैं। अगर ये सच भी हो कि वे करंट अफेयर्स नहीं पढ़ती तो मैं ये ज़रूर कहूँगी कि वे ज़िंदगी को पढ़ती हैं।
वहीँ दूसरे वक्ता आलोक पुराणिक ने कहा कि मैं टापिक को अपनी तरह से समझने की कोशिश करता हूं तो मेरे सामने तस्वीर यह आती है कि इस 125 करोड़ के मुल्क करीब 5 करोड़ का भारत तो भारत का अमेरिका है, अपनी इनकम और संपत्तियों के मामले में। करीब 35 करोड़ का भारत भारत का मलयेशिया है, मध्यमवर्गीय। करीब 80 करोड़ का भारत भारत का युगांडा या बंगलादेश है। आर्थिक तौर पर ये तीन देश इस महादेश में हैं। और जब हम महिलाओं की बात करते हैं, तो अमेरिका, मलयेशिया और युगांडा की महिलाओं की रुचि-अभिरुचियां अलग-अलग ही हैं। अब युगांडा की महिला से उम्मीद करना कि वह करेंट अफेयर्स में वैसे दिलचस्पी लेगी, जैसे मलयेशिया का अमेरिका की महिला लेती है, तो यह थोड़ा सा अव्यवाहरिक होगा। वरिष्ठ व्यंग्यकार स्वर्गीय हरिशंकर परसाईजी ने एक जगह लिखा था कि नारी मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि एक की कमाई में पूरा नहीं पड़ता। अब मसला यह है कि अच्छी-खासी कमाई कर लेने के बावजूद कई महिलाएं अपनी वित्तीय स्थिति को खुद प्रबंधित नहीं करतीं। कई महिलाओं से बात की मैंने, तो उन्होने कहा कि मुझे इस बारे में ज्ञान नहीं है। मैंने उनसे कहा कि सिर्फ दो घंटा मुझे दें और आपको काम भर का वित्तीय ज्ञानी बना दूंगा। और मुझे यह बताते हुए बहुत बहुत अच्छा लगता है कि एक व्यक्तिगत मिशन के तहत करीब तीस महिलाओं को मैंने न्यूनतम वित्तीय ज्ञानी बनाया है और निवेश,मुचुअल फंड में उनका निवेश करवाया है। उनको अपनी वित्तीय स्थिति का बेहतर प्रबंधन करना आया है। संक्षेप में मैं कहना यह चाहता हूं कि ज्ञान, नालेज बहुत जरुरी है, पर उससे पहले यह बताना बहुत जरुरी है कि यह नालेज क्यों जरुरी है। करेंट अफेयर्स पढ़ने के लिए कोई करेंट अफेयर्स नहीं पढ़ेगा। उनके हित से सीधे जोड़ना होगा करेंट अफेयर्स को तब उसकी सुध ली जायेगी। ज़्यादातर महिलाओं को निवेश का मतलब सोना खरीदना पता है जबकि तथ्य यह है कि गोल्ड से ज़्यादा रिटर्न म्यूच्यूअल फण्ड मार्किट में है लेकिन ये महिलाएं जानेगीं तब तो ऐसा कर सकेंगी तो कुल मिला कर इस दिशा में अभी बहुत काम किये जाने की आवश्यकता है।
प्रशांत टंडन ने अपने अनुभव में बताया कि एक सर्वे में उन्होंने पाया की ज़िलों में जहाँ तरह हज़ार से ज़्यादा पुरुष पत्रकार हैं वहीँ सिर्फ महिलाएं हैं। ऐसे में जो खबरें बनायीं जाएंगी ज़ाहिर सी बात है उस परिदृश्य से महिलाएं गायब रहेंगी। इसलिए उसके पाठकों में महिलाएं कम ही होंगी। हँसते हुए वे ये कहना भी नहीं भूले कि महिलाएं हर अफेयर में दिलचस्पी रखती हैं, चाहे दफ्तर की पॉलिटिक्स हो या गली मुहल्ले की।
अलका सक्सेना ने अपनी बात रखते हुए उस दौर के किस्से सुनायें जब उन्होंने अपनी पत्रकारिता शुरू की थी और उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, क्योंकि कोई महिलाओं को गंभीरता से लेता ही नही। कितने लोग हैं जिनके घरों में सुबह उठकर पत्नियां चाय के साथ अखबार पढ़ती हैं, उनकी प्राथमिकता अलग हैं। उनके पढ़ने और सोचने का पैटर्न अलग है। हमें उन्हें भी मुख्यधारा में जोड़ना है। महिलाएं करंट अफेयर्स क्यों नहीं पढ़ती इसके साथ एक पंक्ति आपको ये भी लिखनी चाहिए कि मर्द घरों में स्त्रियों की सहायता क्यों नहीं करते? तब कई तसवीरें साफ़ हो जाएंगी! उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के सेमिनार ज़्यादा से ज़्यादा होने चाहिएं ताकि जो पुरुष यहाँ सुनने के लिए आते हैं काम से काम वे अपने अपने घरों का माहौल बदलें!
रंजना कुमारी ने भी अपने अनुभव में कई महत्वपूर्ण बातें बतायीं कि कैसे राजस्थान में एक खबर लहरिया नाम से कोई अखबार निकलता है और पंचायत स्तर पर उसमें सबकी भागी दारी है। ठीक वैसे ही एक वृहद परिदृश्य में उस सोच को अपनाने की ज़रूरत है।
वक्ताओं के बाद श्रोताओं सवाल जवाब का भी सिलसिला चला। कार्यक्रम का सञ्चालन युवा पत्रकार सर्वप्रिय सांगवान ने किया। आधी आबादी पत्रिका के सहायक संपादक हीरेंद्र झा ने बताया कि समय-समय पर ऐसे कार्यक्रम हम करते रहेंगे ताकि आधी आबादी की ज़रूरत और सोच को पढ़ने और पकड़ने में हमसे कहीं चूक न हो जाए क्योंकि पत्रिका के केंद्र में यही महिलाएं हैं!