आज के आधुनिक सोशल मीडिया के दौर में कोई भी आम दर्शक बड़ी आसानी से हर न्यूज़ चैनल की फितरत बता सकते हैं। एनडीटीवी पर आम दर्शकों की राय स्पष्ट रूप से राष्ट्रविरोधी,बुद्धजीवियों के चैनल,सरकार विरोधी चैनल की है।
तथ्यो के आधार पर मैं एनडीटीवी के चाल चरित्र चेहरे को उजागर करने का प्रयास जरूर करूँगा-
-एनडीटीवी के मुख्य कर्ताधर्ता प्रणव राय की कांग्रेस से नजदीकी बरसों पुरानी है पिछली यूपीए सरकार के घोटालों में एनडीटीवी के कई पत्रकारों पर गंभीर आरोप लगे।
-प्रणव राय ने नीरा राडिया के रडार पर सवार रहने वाली बरखा दत्त जैसे पत्रकारों पद्मश्री से भी सुशोभित करवाया है। अब वह कई साल से रवीश कुमार नाम का एक अभिनेता तैयार कर उपस्थित किए हुए हैं। ताकि मनी लांड्रिंग और फेरा से निपटने में यह हथियार कुछ काम कर जाए।
-टीआरपी की होड़ से कोसों दूर रहने वाले एवं लगातार घाटे में चलने के बाद भी एनडीटीवी की सेहत दुरुस्त क्यों लगती है क्या इस चैंनल को चलाने में देशविरोधी विदेशी ताकतें अपना पैसा पानी की तरह बहा रही है ये गंभीर जाँच का विषय है।
-राष्ट्रवाद के मुद्दे पर इस चैंनल की राहें अन्य चैंनलों इतनी जुदा क्यों है क्या किसी विदेशी ताकतों के इशारे पर इनकी गतिविधियां संचालित है।
-पठानकोट हमले पर सूचनाएं लीक करना, उरी घटना पर चुप्पी,बरखा दत्त द्वारा ट्वीट करके सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाना ,रविश द्वारा राष्ट्रवाद को भांड जैसे शब्दों से संबोधित करना ,पाक की नापाक हरकतों की आलोचना की बजाय सरकार को दोष देना इनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का सूचक है।
-सरकार का विरोध करना मीडिया का अधिकार है जिसका बखूबी इस्तेमाल 2014 से लगातार एनडीटीवी बखूबी कर रहा है लेकिन सरकार के कई अच्छे फैसलों पर भी नकारात्मक चर्चा करवाना समझ से परे है।
– रोहित वेमुला प्रकरण,जेएनयू ,उना, असहिष्णुता,पुरस्कारवापसी, अख़लाक़ की हत्या,बीफ बैन, जीएसटी ,भूमि अधिग्रहण बिल पर नकारात्मक परिचर्चा,जैसे अनेकों प्रकरण पर एनडी टीवी ने सरकार का भारी विरोध किया।दलित मुद्दे पर जानबूझकर प्लांट तरीके से लगातार सरकार पर हमला किया गया।
-आज इस चैनल की परिचर्चा में बड़ी बेशर्मी से सरकार विरोधी पत्रकारों,बुद्धिजीवियों को स्वतंत्र वक्ता(अभय दुबे,अपूर्वानंद,उर्मिलेश,ओम थानवी,इरफ़ान हबीब,अशोक बाजपेयी,विनोद शर्मा,प्रो चिनाय, जैसे अनेको) के रूप में शामिल किया जाता है यानि किसी मुद्दे पर परिचर्चा के दौरान एंकर और असन्तुलित पैनल द्वारा सरकार की एकतरफा पिटाई की जाती है।आखिर ऐसी हरकतें इन पर सवाल खड़ा नहीं करती?
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम क्या किसी बुद्धिजीवी चैनल का लगातार राष्ट्रविरोधी कृत्य में लिप्त रहना उचित है ?ये सवाल हर भारतीय को एनडीटीवी से जरूर पूछना चाहिए।
अभय सिंह
राजनैतिक विश्लेषक