कर्मवीर कमल,एडिटर, द एशियन क्रॉनिकल्स (The Asian Chronicle)-
मैं ज़ी न्यूज़ को उस समय से जानता हूँ जबसे वीररप्पन को। दूरदर्शन के दौर मे डीडी-1 पर आने वाले समाचार के बाद कुछ देखा तो “आज तक मे पेश है अभी तक की खबरे” वाला आज तक और आँखो देखी। वैसे तो वीररप्पन और ज़ी न्यूज़ का कोई आपस मे लेना देना है नहीं, परंतु चैनल बदलते बदलते टीवी कब वीररप्पन की जीवन गाथा ज़ी न्यूज़ के एक न्यूज़ शो “इनसाइड स्टोरी” पर जा रुका पता ही नहीं चला। स्टोरी इंट्रेस्टिंग थी सो पूरी देखी और जाना की कौन हैं विरप्पन। तो इस तरह ज़ी न्यूज़ से मेरी पहचान हुई।
अब बात ज़ी न्यूज़ वाले चौधरी साहब आपकी। काफी समय से बल्कि कई सालो से आपका ये डीएनए रेगुलर ही देख रहा था। न्यूज़ के मामले मे डीएनए के अलावा सिर्फ पुण्य प्रसुन जोशी का 10 तक ही पसंद है, रविश की रिपोर्ट भी अच्छी ही लगती है। कभी मुझे ये तीनों ही न्यूज़ प्रोग्राम बेहतरीन लगते थे। चौधरी साहब पिछले काफी समय या शायद कुछ ही सालो से आप पत्रकारिता क्या होती है अपने इस शो के माध्यम से सभी को सीखा रहे है, आपका ये तकिया कलाम था की अब जी न्यूज़ बताएगा की सच्ची पत्रकारिता क्या होती है।
जरा कोई खबर आपने चालाई तो बोलने लगे की अब ज़ी न्यूज़ देखाएगा की सच्ची पत्रकारिता। सुधीर जी, क्या होती है सच्ची पत्रकारिता? बाकी चैनल को भी तो सिखाओ। कैसे होती है सच्ची पत्रकारिता?
आजकल आपने नए शब्द की खोज की है… “डिज़ाइनर पत्रकार।” क्या होता है ये डिज़ाइनर पत्रकार? ज़रा बताओ तो, है क्या इसकी परिभाषा। आज भी जब आपके शो मे ये डिज़ाइनर पत्रकार बार बार सुन रहा था को बड़ा चुभ रहा था। कभी मुझे आपकी निष्पक्ष खबरे अच्छी लगती थी, पर आजकल जबसे बड़े साहब कमल पर बैठ कर राज्य सभा गए है (ये और बात है की इसमे विवाद हो गया है, और मामला जांच मे चल रहा है) आप एक तरफा हो गए हो। बात बात पे पत्रकारिता सिखाने लगते हो, पाकिस्तान भेजने लगते हो।
ऐसा क्या हो गया की आप बात बात पर सच्ची पत्रकारिता का जिक्र करने लगते हो? आपको बार बार ये क्यूँ साबित करना पड़ता है की आप भी सच्ची पत्रकारिता करते हो या कर सकते हो।
आपने भारत के पत्रकारो को पाकिस्तान मे जा कर रेपोर्टिंग करने को बोला है। पत्रकारो की तो भारत मे भी हत्या होती है सर जी। 2015 मे 110 के करीब जर्नलिस्ट की हत्या हुई थी, भारत 3 देशो की सूची मे खतरनाक के पायदान पर था।
आप भी आरएसएस और बीजेपी नेताओ की तरह बात बात पर लोगो को पाकिस्तान भेजने लगे हो। कोई ट्रांसपोर्ट का बिज़नस तो… खैर छोड़िए इस बात को। मेरे पास पासपोर्ट नहीं है, बनवा दो और वीज़ा दिला दो तो देख ले हम भी गांधी जी के उस वक्त के हिंदुस्तान की उस हिस्से को भी, भगत सिंह के लाहोर को भी। भारत के बिछड़े और बिगड़े उसके भाई को भी।
बार बार डिज़ाइनर पत्रकार और सच्ची पत्रकारिता आपको याद आ रही है। कहीं ऐसा तो नहीं आपके दिल से अभी साल 2012 गया नहीं। जब कोल की कालिख के बीच 100 करोड़ी पत्रकारिता का डिज़ाइन चेंज हो गया था।
सुधीर जी, पांचों उंगलिया एक समान नहीं होती, इसीलिए आप बार बार ये डिज़ाइनर पत्रकारिता और सच्ची पत्रकारिता का आलाप करना छोड़ दे, बाकी लोग भी आप ही की तरह मेहनत करते है।
कभी था आपका प्रशंसक
कर्मवीर कमल