साइबर बांस करने के तरीके क्या हैं- पहला तरीका है आघात पहुँचाना, अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करना,सेक्सुअल लैंग्वेज का इस्तेमाल करना, परेशान करना,मसलन् , बार-बार यह कहना ‘बात कीजिए प्लीज’ आदि । जो व्यक्ति इस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहा है वह कितनी बार दोहराता है अपने व्यवहार को,महिने में एक बार,दो बार ,तीनबार या रोज।इससे आप उसके असंतुलन का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं।
साइबर साँड मूलतःसामाजिक जीवन में मौजूद दादागिरी का ही साइबर रूप है। साइबर साँड ज्यादातर वे युवा और तरूण हैं जो एडजेस्टमेंट प्रॉब्लम के शिकार हैं। इसे साइबर भाषा में रिस्क ग्रुप में रखा जाता है और ये लोग भिन्न किस्म के व्यवहार की मांग करते हैं।
साइबर पंगेबाज को साइबर बैल कहना ज्यादा सही होगा।वे अपनी नेगेटिव हरकत को बार बार दोहराते हैं। मसलन् साइबर बैल चैट में आकर पूछते हैं ” क्या आप मुझे पसंद करते हैं’। ‘सेक्स करोगे’,या वे कोई व्यक्तिगत आक्षेप करने वाले वाक्य या शब्द का इस्तेमाल कर बैठते हैं।
साइबर स्पेस में किया गया एक नेगेटिव एक्शन दूरगामी असर छोड़ता है। नेगेटिव एक्शन की पुनरावृत्ति तुरंत प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है।साइबर पंगेबाज कैसे लोग होते हैं ,किस उम्र के होते हैं,उनके पंगा लेने का तरीका क्या वे साइबर कम्युनिकेशन में कैसे परेशान करते हैं। इसे साइबर में ‘बांस’ करना भी कहते हैं।
पश्चिम में इसमें ज्यादातर 10-18साल की उम्र के तरूण आते हैं।भारत में ऐसे लोगों में वयस्कों की संख्या ज्यादा है। इन लोगों का काम है नेट,फेसबुक,ब्लॉग,ईमेल,चाट आदि के जरिए आघात पहुँचाना।ये नेगेटिव एक्शन में ज्यादा रहते हैं।