हैरानी होती है कि हम सब एक समाज , एक देश के तौर पर नाकाम होते जा रहे हैं। इस देश में कोई भी जिस दिन भी चाहे वो हीरो या नायक या भगवान या देवी माँ बन सकता है। कानपुर के ललित शुक्ला ने अचानक एक दिन दावा किया कि उनकी बेटी श्रद्दा गंगा नदी में तैरकर कानपुर से वाराणसी की 570 किलोमीटर की यात्रा 7 दिन में तय करेगी। ये दावा हर अखबार और टीवी की हेडलाइन बन गई। तीसरे दिन उन्होंने दावा कर दिया कि वो रोज़ 8 घंटे में 70-80 किलोमीटर तैराकी कर रही है। ये भी हेडलाइन बन गई।किसी ने मतलब किसी ने भी नहीं सोचा कि क्या एक 12 साल की बच्ची 8 घंटे में रोज़ 80 किलोमीटर तैर सकती है और वो भी उफनती गंगा में? 23 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीत चुके माइकल फ़ेल्प्स की जो सबसे तेज़ रफ़्तार है , अग़र वो उस रफ़्तार से भी आठ घंटे तक लगातार तैराकी करे , तब भी वो 80 किलोमीटर की दूरी तय नहीं कर सकता। लेकिन हमारे यहाँ की बच्ची रोज़ 80 किलोमीटर तैर रही है और रोज़ वो हेडलाइन्स और अखबार के पाँच पाँच कॉलम में जगह पा रही है।
क्या हमारे इस पूरे समाज में , इस पूरे ढाँचे में कोई एक भी शख़्स ऐसा नहीं है जो ये सवाल उठाए कि ये कैसे हो सकता है ? दुर्भाग्य ये कि सभी लोग आँख बंद करके वही दिखाते और लिखते रहे , जो उस बच्ची के पिता दिखाते रहे। और जब किसी ने इस पूरे अभियान पर सवाल उठाया तो उसे जान से मारने की धमकी मिली , 700 -800 लोगो की भीड़ ने पथराव किया क्योंकि तैराकी का विश्व रिकॉर्ड बनाने निकली वो प्यारी बिटिया सिर्फ तीसरे दिन तक आते आते देवी माँ , गंगा मैया का साक्षात अवतार बन चुकी थी , उसकी पूजा शुरू हो चुकी थी। ऐसे में पढ़े लिखे पत्रकारों , संपादकों से लेकर अनपढ़ गाँव वालों तक- सब की अपनी तर्क शक्ति इस्तेमाल करने लायक बुद्दि बची कहाँ थी। इसलिए अब एक नई देवी का जन्म हो चुका है। पूजा शुरू हो ही गई है। मंदिर भी बन ही जाएगा।
हम सब मूर्ख और भावुक लोग ऐसे ही झूठ के देवी देवताओं के आदी हैं और हमें वही मिल रहा है , जिसके हम लायक हैं। देश को नई देवी मुबारक हो !!!
पर देवी को अलग करके देखें तो हो सकता है कि बच्ची में वाक़ई प्रतिभा हो। गंगा में उतरना और तैरना कोई मज़ाक़ तो नहीं है ,चाहे वो 500 मीटर ही क्यों ना हो !!
काश श्रद्दा के माता पिता उसका तमाशा बनाने के बजाय उसके बचपन को सहेज कर रखते।और उसे वो माहौल देते,जहाँ से ओलंपिक का रास्ता शुरू होता है।