मीडिया मामलों के विशेषज्ञ और चर्चित किताब मंडी में मीडिया के लेखक ‘विनीत कुमार’ वर्ष 2014 को सेल्फी इयर कहते है तो वो नजारा सामने आ जाता है जब चाय पार्टी में प्रधानमंत्री मोदी के साथ तस्वीरें खिचवाने के लिए पत्रकार टूट पड़े और उस उपेक्षा को भी भूल गए जो मोदी सरकार के बनने के बाद से उन्हें लगातार मिल रही थी. ख़ैर जब पूरा साल ही प्रेस रिलीज पत्रकारिता का हो तो क्या कहा जाए? आइये विनीत कुमार के नजरिए से जानते हैं वर्ष 2014 में क्या रही मीडिया की कहानी (मॉडरेटर)
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न्यूज चैनल के लिहाज से साल 2014 को स्लेफी इयर या ड्रोन कैमरा इयर कह सकते हैं. चुनावी/राजनीतिक माहौल के बीच पहली बार रैलियों में पहली बार ड्रोन कैमरे इन्ट्रोड्यूस किए गए. प्रेस मीट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चैनलों के संपादकों के साथ सेल्फी चर्चा में रही.
न्यूज गैदरिंग पैटर्न के लिहाज से देखें तो पहली बार राजनीतिक पार्टियों खासकर बीजेपी ने मीडिया सेल को वार रूम में बदल दिया और रैलियों के विजुअल्स चैनलों के बजाय इन्हीं पार्टियों के शूट किए, चलाए गए. इस पर भारी हंगामा भी हुआ और बाद में कर्टसी लिखा जाने लगा.जी न्यूज जैसे चैनल के मालिक खुद चुनावी रैली के मैंदान में उतरे और लोगों से बीजेपी को वोट देने की अपील की.
साल 2014 का शुरुआती दौर प्रेस रिलीज का दौर रहा जिसमे आम आदमी पार्टी की ओर से एक के बाद एक खुलासे किए गए औऱ उस पर प्रेस रिलीज जारी किए, वही चैनलों की हैडलाइंस बनी.
कुल मिलाकर साल 2014 का न्यूज मीडिया चुनावी और राजनीतिक मुद्दों के आसपास ही घूमता रहा और ज्यादातर कवरेज और कार्यक्रम इसी के आसपास घूमते रहे. ये जरूर है कि चुनाव के बाद नए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक के बाद एक विदेशी प्रवास होने से बड़ी संख्या में यहां के चैनलों ने उन देशों में जाकर कवरेज किए. इस बीच दो बातें हुई. एक तो पहले
के मुकाबले दूरदर्शन की ताकत पहले से बढ़ी, दूरदर्शन साभार फुटेज की बाढ़ सी आ गयी( कई जगहों और मौके पर निजी चैनलों को दूर रखा गया) और दूसरा कि निजी चैनलों ने इन प्रवास की जो कवरेज की उसे दो देशों के बीच के जो राजनीतिक/कूटनीतिक संबंध को लेकर कवरेज होती रही है, उसे सिनेमा/कन्सर्ट की कवरेज में बदल दिया. दर्शकों को प्रधानमंत्री के फैन क्लब में बदलने की कोशिश की गई और उनके भाषण में मनोरंजन फैब्रिक को जूम इन किया गया. इन्हीं घटनाओं के बीच राजदीप सरदेसाई और नरेन्द्र मोदी के प्रशसंकों के बीच की झड़प खूब चर्चा में रही. इधर इंडिया टीवी का आप की अदालत के 21 साल रजत शर्मा के शक्ति प्रदर्शन के रूप में चर्चा में रहा.
इधर मनोरंजन चैनलों पर गौर करें तो न्यूज चैनलों पर चुनावी माहौल खत्म होते ही( 23 जून) जी नेटवर्क के चैनल जिंदगी ने टीवी की दुनिया में एक नई इबारत पेश की. पाकिस्तान के हंगामा चैनल पर प्रसारित एक के बाद एक कार्यक्रमों के प्रसारण से टीवी सीरियल की नई व्यूअरशिप बनी. स्टार प्लस और जीटीवी के सास-बहू सीरियलों में जहां संवाद और कहानी जूलरी, इन्टीरियर और बार्ड्रोब की चमक के आगे दबकर रह गई थी, इसके सीरियलों में संवाद और कहानी नई समझ और असर के साथ सामने आयी और ट्रेंड सेटर बनने में कामयाब रहा. इसका असर हुआ कि इसी साल( 19 नवम्बर) जब एपिक नाम से नया चैनल लांच हुआ तो उसकी थीम और प्रोमो जिंदगी के वायनरी बनायी गई जिसकी अंडरटोन है कि कहानियों के लिए पाकिस्तान क्यों, अपने देश की ओर लौटें. हालांकि जिंदगी की पॉपुलरिटी की एक बड़ी वजह एक ये भी रही है कि लगभग सारे सीरियल उन रचनाओं पर आधारित हैं जो कि पहले से ही क्लासिक के रुप में लोगों के बीच बेहद पॉपुलर रहे हैं.
ये जरूर है कि आनेवाले समय में एपिक पहले से स्टैब्लिश स्टार प्लस, सोनी और जीटीवी जैसे चैनलों को बुरी तरह पछाड़ने जा रहा है. इसकी बड़ी वजह है कि इसके कार्यक्रमों की फॉर्मेट ऐसी है कि डिस्कवरी से लेकर सास-बहू सीरियलों और यहां तक कि न्यूज चैनलों के फैब्रिक को शामिल कर लिया है और प्रोडक्शन क्वालिटी इतनी इनरिच है कि सिनेमा जैसी भव्यता पैदा करता है.
बाकी के चैनलों और कार्यक्रम अपने पुराने फॉर्मेट और ऑडिएंस की थस्ट को फुलफिल करते नजर आए. हां ये जरूर है कि बिग बॉस, कौन बनेगा करोड़पति अपनी थीम में पहले के मुकाबले ज्यादा बारीक हुए हैं. सेटअप को भी लेकर नए-नए प्रयोग किए गए.
बंधन( जीटीवी) और एवरेस्ट( स्टार प्लस) जैसे नए सीरियल भी आए जिसमे एक में तो चौदह-पन्द्रह साल के निजी टीवी चैनलों के इतिहास में पहली बार सास-बहू के बजाय हाथ लीड कैरेक्टर बना तो दूसरे में मॉन्टेरिनर की जीवंत दुनिया शामिल की गई.
साल 2013 के असर से ये साल जो जोधा अकबर, महाराणा प्रताप जैसे ऐतिहासिक चरित्रों के होने के बावजूद टिपिकल हिन्दू-कथा और सीरियलों के अफेयर के बीच मोनोटोनस तरीके से धंसता जा रहा था, उसके बीच जिंदगी, एपिक जैसे दो नए चैनलों सहित ऐसे सीरियलों ने टेस्ट चेंजर का काम किया.
हां ये जरूर है कि इस साल जो माहौल बना, डांस और गाने पर आधारित रियलिटी शो की चमक थोड़ी जरूर फीकी पड़ गई. आनेवाला साल स्टोरी, रिसर्च और आइडिया पर आधारित शो का साल होने जा रहा है, सास-बहू की मेलोड्रामा और कपिल के लॉफ्टर शो ने बहुत फुटेज खा लिए.
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