तारकेश कुमार ओझा
भारतीय राजनीति के अमर सिंह और हाफिज सईद से मुलाकात करके चर्चा में आए वेद प्रताप वैदिक में भला क्या समानता हो सकती है। लेकिन मुलाकात पर मचे बवंडर पर वैदिक जिस तरह सफाई दे रहे हैं, उससे मुझे अनायास ही अमर सिंह की याद हो आई। तब भारतीय राजनीति में अमर सिंह का जलवा था। संजय दत्त , जया प्रदा व मनोज तिवारी के साथ एक के बाद एक नामी – गिरामी सितारे समाजवादी पार्टी की शोभा बढ़ाते जा रहे थे। इस पर एक पत्रकार के सवाल के जवाब में अमर सिंह ने कहा था …. मेरे व्यक्तित्व में एेसा आकर्षण है कि मुझसे मिलने वाला पानी बन जाता है, इसके बाद फिर मैं उसे अपने मर्तबान में डाल लेता हूं।
समय के साथ समाजवादी पार्टी में आए तमाम सितारे अपनी दुनिया में लौट गए, औऱ अमर सिंह भी आज राजनीतिक बियावन में भटकने को मजबूर हैं। इसी तरह पाकिस्तान में मोस्ट वांटेंड हाफिज सईद से मुलाकात से उपजे विवाद पर तार्किक औऱ संतोषजनक जवाब देने के बजाय वैदिक चैनलों पर कह रहे हैं कि उनकी फलां – फलां प्रधानमंत्री के साथ पारिवारिक संबंध रहे हैं। फलां – फलां उनका बड़ा सम्मान करते थे। स्व. नरसिंह राव के प्रधानमंत्रीत्व काल में तो उनक घर के सामने कैबिनेट मंत्रियों की लाइन लगा करती थी।
अब सवाल उठता है कि एक पत्रकार में आखिर एेसी क्या बात हो सकती है कि उसके घर पर मंत्रियों की लाइन लगे। प्रधानमंत्री उनके साथ ताश खेलें। लेकिन पत्रकारिता की प्रकृति ही शायद एेसी है कि राजनेताओं से थोड़ा सम्मान मिलने के बाद ही पत्रकार को शुगर – प्रेशर की बीमारी की तरह आत्म प्रवंचना का रोग लग जाता है। जिसकी परिणित अक्सर दुखद ही होती है।
पश्चिम बंगाल में 34 साल के कम्युनिस्ट राज के अवसान और ममता बनर्जी के उत्थान के दौर में कई पत्रकार उनके पीछे हो लिए। सत्ता बदली तो उन्हें भी आत्म मुग्धता की बीमारी ने घेर लिया। हालांकि सत्ता की मेहरबानी से कुछ राज्य सभा तक पहुंचने में भले ही सफल हो गए। लेकिन उनमें से एक अब शारदा कांड में जेल में हैं, जबिक कुछ अन्य सफाई देते फिर रहे हैं। वैदिक का मामला थोड़ा दूसरे तरीका का है। तमाम बड़े – बड़े सूरमाओं के साथ नजदीकियों का बखान करने के बाद भी शायद उनका अहं तुष्ट नहीं हुआ होगा। जिसके चलते अंतर राष्ट्रीय बनने के चक्कर में वे पाकिस्तान जाकर हाफिज सईद से मुलाकात करने का दुस्साहस कर बैठे। जिसके परिणाम का शायद उन्हें भी भान नहीं रहा होगा।
भैया सीधी सी बात है कि पत्रकार देश व समाज के प्रति प्रतिबद्ध होता है। वैदिक को बताना चाहिए कि सईद से उनकी मुलाकात किस तरह देश और समाज के हित में रही। जनता की यह जानने में कतई दिलचस्पी नहीं होती कि किस पत्रकार की किस – किस के साथ गाढ़ी छनती है या कि राष्ट्रीय – अंतर राष्ट्रीय प्ररिप्रेक्ष्य में उसका कितना सम्मान है। लेकिन क्या करें…। आत्म प्रवंचना का रोग ही एेसा है।
(लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं)
एक बात और हम मुशरफ का स्वागत कर चुके हे मुंबई संसद हमले से अधिक लोग कारगिल में शहीद हुए थे और कारगिल सिर्फ सिर्फ मुशरफ की निजी खफ्त थी कारगिल मुशरफ साहब का बचपन का सपना था जिसे साइन से लगाय वो कई बार हुक़ुमरानो खासकर बेनज़ीर जी की झिड़की भी खा चुके थे खेर अपना सपना जो उन्होंने हज़ारो लोगो की जान लेकर अधूरा पूरा किया तो मुशरफ ज़्यादा बड़े अपराधी हुए जिनका इस्तकबाल अटल मनमोहन दोनों कर चुके हे1
sikander hayat • 14 hours ago
सवाल ये भी उठता हे की वैदिक जी को क्यों इतना चीख चीख कर अपना बायोडेटा बताना पड़ रहा हे इसका कारण आतमुगदता के साथ साथ ये भी हो सकता हे की किस तरह से हमारे यहाँ अंग्रेजी मिडिया तो खेर हिंदी वालो को कुछ समझता ही नहीं हे साथ साथ खुद हिंदी वाले भी किसी हिंदी वाले ( जब तक वो उनके ऊपर कृपा न करे न कर चूका हो ) को कुछ समझते ही नहीं हे हिंदी वालो में भी अंग्रेजी वालो की बड़ाई करने का रोग बढ़ता ही जा रहा हे
sikander hayat sikander hayat • 13 hours ago
वैदिक साहब दुआरा बार बार अपना बाओडेटा बाचने पर उनके खिलाफ सबसे अधिक हल्ला हिंदी वाले ही कर रहे हे की वो आत्मुग्द हे बड़बोले हे ये हे वो हे चलिए हे सवाल ये हे की क्या हिंदी वालो ने तब इतना हल्ला किया था जब टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक खुद को पी एम् के बाद दूसरी कुर्सी का आदमी बताते थे – ? तब तो चू भी नहीं की होगी