भाजपा देश भर में होगी लेकिन उत्तराखंड में तो नजर नहीं आती। अगर उत्तराखंड में भाजपा होती तो वहां के हर मुद्दों को उठाया जाता। जन समस्याओं पर कोई पार्टी लड़ती हुई नजर आती। मगर विपक्ष के नाम पर इस राज्य में न भाजपा है न उक्रांद।
ये केवल दस्ते की तरह हैं जो केवल समय समय पर व्यूह रचना बनाते हैं । कभी जीतते हैं कभी हारते हैं। लेकिन किसी राज्य में एक राजनीतिक पार्टी की तरह तो बिल्कुल नहीं है।
किसी सजग प्रहरी की तरह तो बिल्कुल भी नहीं। इनके नेताओं की चिंता मैं शब्द तक सिमट गई। उत्तराखंड इनके लिए – मैं – शब्द हो गया।
भाजपा के शूरमा नेताओं ने एक भी ढंग का मुद्दा नहीं उठाया। सत्ता चला रही कांग्रेस का जितना विरोध होता है कांग्रेस से ही होता है।
भाजपा यहां नजर नहीं आती। भाजपा के नेता बयानों तक सीमित हैं। भाजपा के नेता ये सवाल तक नहीं कर पाते हैं कि विराट कोहली को अगर करोड रुपया दिया तो प्रमोशन का विज्ञापन नजर क्यों नहीं आता। एक नेता राज्य के खर्चे पर पंद्रह दिन तक मुंबई में क्या करता रहा।
उत्तराखंड में गांव से शहर लाते हुए एक गर्भवती महिला की रास्ते में मौत हो जाती है, कहीं कैलाश खैर के खाते में करोड रुपए पड जाते हैं, कहीं अस्पतालों में मरीजों को दवाए नहीं मिल पाती है, कहीं गांव के आखरी घर में ताला लग जाता है, कहीं मंदाकिनी घाटी के घर कांप रहे होते हैं, कहीं वेतालघाट अपने पर्यटन की आस लगाए दिन काटता है। कहीं यमुना घाटी के पास किसी स्कूल की छत ठह जाती है। मगर भाजपा का मौन पसरा रहता है।
इनकी राजनीति बडी है। यह पार्टी छोटे मुद्दों स्थानीय मुद्दों को तव्वजो नहीं देना चाहती। इन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी नाम ही काफी है। नोटबंदी उत्तराखंड में कमल खिला देगी। इन्हें लगता है कि अमित शाह का आना और रथ में घूमना मंगलकारी हो जाएगा। इन्हें लगता है कि हिंद्त्व का नाम ले लो भले भी पांच साल आराम से उंघते रहो।
हालात ये है कि कांग्रेस के लिए सबसे सुविधाजनक व्यक्ति भाजपा के ही लोग है। अजय जी के भजपा में होते कांग्रेस को कई हित है। भाजपा के तीन पराक्रमी ऐसी ताल ढोके रहते हैं कि कांग्रेस को बस मशकबीन बजाने की देर रहती है। अब ये पराक्रमी केवल अपने संसदीय क्षेत्र या चुनावी क्षेत्र तक सीमित हो गए हैं ।
नजर चाहे दूसरों के इलाकों पर हो लेकिन कितनी सकारात्मक कहना मुश्किल। मुख्यमंत्री के लिए छह दावेदार हैं । राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने भी तबले में कहरवा बजाना शुरू कर दिया है। कहना मुश्किल है कि चुनाव आते आते संगीत में कितने फ्यूजन सुनने को मिल जाएंगे। हालात ये भी कि नरेंद्र मोदी को मुरादाबाद के पीतल के बर्तनों की चमक का अहसास तो है लेकिन अलमोड़ा के तांबे के बर्तन की खनक को भूल ही गए हैं। एक रेल की घोषणा क्या लोगों को खुश कर देगी।
यही भाजपा है जो यह सवाल भी नहीं उठा पाती कि राजबब्बर उप्र के राज्यसभा सांसद हैं या उत्तराखंड के। और उत्तराखंड के हैं तो उप्र में इतने मशगूल क्यों हैं। क्या उनके कुछ सरोकार उस भूमि से भी हैं जिसने उन्हें राजसभा में भेजा।
भाजपा यह भी नहीं पूछ पाती कि विराट कोहली को दिए विज्ञापन का क्या हुआ। क्या पैसा निकला। निकला तो राज्य प्रमोशन का विज्ञापन कहां है। पहले तो सवाल पर्यटन मंत्री से यही होना चाहिए था कि बेहद दिक्कतों में घिरे राज्य की मदद विराट कोहली कर रहा है या इस राज्य के अभागे लोग विराट कोहली और कैलाश खेरों की मदद कर रहे हैं। मगर राज्य में भाजपा होती तब न.
वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार –